Akola: सुप्रीम कोर्ट ने पातुर नगर पालिका द्वारा उर्दू बोर्ड लगाने का विरोध करने वाली याचिका को किया खारिज, कहा - उर्दू एक ‘लोकभाषा’

अकोला: “उर्दू एक लोक भाषा है, इसका किसी धर्म से कोई संबंध नहीं है, तथा मराठी के साथ इसके प्रयोग पर कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं है।” यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अकोला जिले में पातुर नगर पालिका द्वारा उर्दू बोर्ड लगाने का विरोध करने वाली याचिका को खारिज कर दिया है।
अकोला जिले में पातुर नगर परिषद की स्थापना 1956 में हुई थी। यहाँ 60% मुस्लिम आबादी है, इसलिए नगरपालिका का साइनबोर्ड उर्दू और मराठी दोनों में प्रदर्शित किया गया था। साल 2020 में नगर पालिका को एक नए भवन में स्थानांतरित कर दिया गया। इसमें मराठी और उर्दू दोनों भाषाओं में बोर्ड लगाने का प्रस्ताव पारित किया गया।
हालांकि, पूर्व नगरसेविका वर्षा बागड़े ने इस उर्दू भाषा पर आपत्ति जताई थी। इस संबंध में उन्होंने दो बार उच्च न्यायालय और दो बार सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर की थीं, लेकिन उनकी याचिकाएं उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय दोनों ने खारिज कर दी थीं। इस संबंध में, न्यायालय ने कहा कि न्यायालय के लिए भाषाई विविधता का सम्मान करना तथा उर्दू सहित अन्य भाषाओं के साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार करना महत्वपूर्ण है।
अकोला जिले के पातुर नगर निगम भवन पर लगाई गई पट्टिका पर मराठी के साथ उर्दू भाषा का भी प्रयोग किया गया है। उच्च न्यायालय द्वारा इस बोर्ड के उपयोग की अनुमति दिए जाने के बाद इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति विनोद चंद्रन की पीठ ने स्पष्ट किया कि कानून में उर्दू पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
अदालत ने यह भी कहा कि बिलबोर्ड पर मराठी के अलावा अन्य भाषाओं का उपयोग करना महाराष्ट्र स्थानीय प्राधिकरण (राजभाषा) अधिनियम का उल्लंघन नहीं है। इस संबंध में याचिकर्ता पूर्व नगरसेविका वर्षा बागड़े से संपर्क किया गया तो उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। याचिकाकर्ता के खिलाफ लड़ने वाले बुरहान सैयद अली ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है।

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