उपमुख्यमंत्री अजित पवार के बयान से राज्य के शिक्षा क्षेत्र में गुस्सा, घमंडी भाषा इस्तेमाल करने का आरोप
अकोला: उपमुख्यमंत्री अजित पवार के बयान से राज्य के छात्र, शोधकर्ता और शिक्षण विभाग में बहुत गुस्सा है। “हम पीएचडी करके क्या दिए जलाएंगे?” और “एक ही परिवार के पांच लोग पीएचडी इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें पैसे मिलते हैं,” जैसे बयानों से अजित पवार पर मनुवादी, घमंडी और लोकतांत्रिक मूल्यों के हिसाब से भाषा नहीं इस्तेमाल करने का आरोप लग रहा है। इसकी बुराई हो रही है कि रूलिंग पार्टी को यह ध्यान रखना चाहिए कि जनप्रतिनिधि जनता का सेवक होते हैं, मालिक नहीं।
आज राज्य में शिक्षण व्यवस्था की हालत बहुत खराब है। 65 हज़ार मराठी स्कूल बंद हैं, 11 हज़ार प्रोफेसर की पोस्ट खाली हैं, यूनिवर्सिटी में करीब 60 परसेंट टीचर की कमी है। पिछले तीन साल से अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी छात्रों को स्कॉलरशिप नहीं मिली है। महाज्योति, बार्टी और सारथी संस्थाओं में छात्रों की फेलोशिप दो साल से रुकी हुई है। सवाल उठ रहा है कि इस हालत के लिए छात्र ज़िम्मेदार हैं या सरकार?
एक तरफ रिसर्च, पीएचडी और छात्र का मज़ाक उड़ाया जाता है, वहीं दूसरी तरफ विधायक या विधान परिषद सदस्य बनने के बाद उन्हें ज़िंदगी भर 50 से 52 हज़ार रुपये महीने की पेंशन दी जाती है। राज्य में करीब 900 पुराने विधायक हैं और सरकार हर साल उनकी पेंशन पर करीब 54 करोड़ रुपये खर्च कर रही है। “उन्होंने कौन सी बत्तियां जलाईं?” यह सवाल भी उठ रहा है।
इसी पृष्टभूमि में पवार परिवार की भी बुराई हो रही है। शरद पवार, अजित पवार, सुप्रिया सुले, सुनेत्रा पवार और रोहित पवार एक ही परिवार के पांच सदस्य सांसद, विधायक और मंत्री हैं। फिर सवाल उठ रहा है कि क्या एक ही परिवार के लोगों के सत्ता में रहने पर कोई रोक लगेगी।
आलोचक कह रहे हैं कि छात्र देश की संपत्ति हैं, किसी के गुलाम नहीं। शिक्षा, रिसर्च और इंफ्रास्ट्रक्चर देना सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है, यह किसी का एहसान नहीं है। ज्ञान का मज़ाक उड़ाने वाली और छात्रों को दोषी ठहराने वाली भाषा पर सत्ता की हवस का प्रतीक होने का आरोप लग रहा है।
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