Assembly Election: दलित और अल्पसंख्यक गठजोड़ ने उत्तर नागपुर को बनाया कांग्रेस का मजबूत किला, भाजपा की राह कठिन

नागपुर: राज्य में कई ऐसी विधानसभा हैं, जो राजनीतिक पार्टियों का गढ़ बन चुकी है। जिसे भेदना विपक्षी पार्टियों के लिए बेहद कठिन है। ऐसी ही स्थिति उत्तर नागपुर विधानसभा सीट पर दिखाई दे रही है। दलित और अल्पसंख्यक गठजोड़ ने कांग्रेस को यहां बेहद मजबूत कर दिया है। जिसका परिणाम यह हो गया है कि, उत्तर नागपुर सीट कांग्रेस का एक अभेद किला बन गया है। जिसे तोड़ना भारतीय जनता पार्टी के लिए बेहद मुश्किल है। हालांकि, 2014 में भाजपा का उम्मीदवार यहां से जीत चुका है। आज की इस स्टोरी में जानेंगे आख़िर उत्तर नागपुर में क्या है स्थिति, जातियां का कैसा है समीकरण और आगमी चुनाव में क्या है मुद्दे।
2019 में नितिन राउत और भाजपा के सिटिंग विधायक मिलिंद माने के बीच लड़ाई हुई थी। जहां राउत ने 44 प्रतिशत से ज्यादा वो हासिल करते हुए माने को 20 हज़ार से ज्यादा वोटो से हरा दिया था। राउत को जहां 86,972 वोट मिले थे, वहीं भाजपा उम्मीदवार को 66,127 वोट ही मिल पाया था। बीएसपी उम्मीदवार यहां तीसरे नंबर पर रहा।
विधानसभा का इतिहास:
उत्तर नागपुर विधानसभा सीट की बात करें तो इसका गठन 1967 के परिसीमन में किया गया था। उत्तर नागपुर एक आरक्षित सीट है, अनुसूचित जाति के लिए यह सीट आरक्षित है। आरक्षित सीट होने के कारण यहां दलित पार्टियों का दबदबा रहा है। जिसमें इंडियन फॉरवर्ड ब्लॉक, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया सहित कांग्रेस भी शामिल है। इसी के साथ भारतीय जनता पार्टी की भी स्थिति यहां मजबूत है। चुनावी इतिहास देखें तो यहां दो बार रिपब्लिकन पार्टी, दो बार भाजपा, एक बार फॉरवर्ड ब्लॉक और पांच बार कांग्रेस का उम्मीदवार जीता है। वर्तमान में कांग्रेस के नितिन राउत यहां से विधायक हैं। इसके पहले राउत तीन बार यहां से विधायक रह चुके हैं। हालांकि, 2014 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
विधानसभा की जातिय समीकरण:
जैसे की हमने आप को पहले बताया कि, उत्तर नागपुर सीट एक आरक्षित सीट है। नागपुर शहर की सभी विधानसभा सीटों के मुकाबले यहां अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है। 2011 की जनगणना के अनुसार, यहां 131,477 जो कुल मतदाता का 35 प्रतिशत से ज्यादा है। इसी के साथ 54,179 मुस्लिम मतदाता भी है। दोनो को अगर मिला लिया जाए तो यह 50 प्रतिशत से ज्यादा हो जाता है। इसी के साथ यहां सिख समुदाय भी बड़ी संख्या में मौजूद है। वहीं अनुसूचित जनजाति के मतदाता भी यहां मौजूद है, जो करीब 10 प्रतिशत से ज्यादा है।
विधानसभा के प्रमुख मुद्दे:
उत्तर नागपुर शहर के प्रमुख हिस्सों में से एक है। लेकिन इसकी गिनती अभी भी पिछड़े और विकास के अभाव से जूझते हुए विधानसभा क्षेत्र के रूप में होती है। इस विधानसभा क्षेत्र में जरीपटका, कमाल चौक जैसे बड़े व्यापारिक केंद्र मौजूद है। लेकिन इसके बावजूद विधानसभा के कई इलाके विकास के इंतजार में है। अनाधिकृत लेआउट यहां की सबसे बड़ी समस्या है। नागपुर मनपा के आधीन आने वाले क्षेत्र ऐसे दिखाई पड़ते हैं जैसे कोई ग्रामीण क्षेत्र हो। नारा, नारी जैसे क्षेत्र अभी भी विकास के लिए जूझ रहे है। इसी के साथ यहां स्वास्थ्य भी एक बड़ा मुद्दा है। शहर के सभी बड़े अस्पताल या तो मध्य, दक्षिण या दक्षिण पश्चिम विधानसभा में हैं। जिसके कारण यहां ने निवासी पिछले कई सालों से एक अस्पताल बनाने की मांग कर रहे हैं।
डीएम फैक्टर ने भाजपा की राह की मुश्किल
जैसे की हमने पहले बताया उत्तर नागपुर में अनुसूचित जाति और मुस्लिम की संख्या 50 प्रतिशत है। जिसमें अनुसूचित जाति में हिंदू से ज्यादा बौद्ध धर्म या कहें आंबेडकरी विचार को मानने वाले ज्यादा है। आम तौर पर दोनो समुदाय कांग्रेस के कोर वोटर माने जाते है। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में इसका प्रमाण भी मिला। कांग्रेस उम्मीदवार विकास ठाकरे के मुकाबले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी 32 हज़ार वोटों से यहां पीछे रहे। इस डीएम गठजोड़ ने उत्तर नागपुर विधानसभा सीट पर भाजपा की राह बेहद कठिन कर दी है।

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