Nagpur South Assembly Seat: बीजेपी-कांग्रेस के लिए बनी नाक का सवाल, हैट्रिक लगाएगी भाजपा या होगा बदलाव

नागपुर: विधानसभा चुनाव की तारीखें जैसे जैसे पास आ रही है वैसे वैसे चुनावी माहौल भी गर्म होता जा रहा है। हम लागातार विदर्भ की तमाम विधानसभा सीटो की चर्चा आंकड़ों द्वारा कर रहे हैं। इसी क्रम में आज हम नागपुर दक्षिण विधानसभा सीट को लेकर चर्चा करेंगे। बीते चुनाव में भाजपा के मोहन मते को यहां से जीत मिली थी। वहीं कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही। वर्तमान में दक्षिण नागपुर सीट भाजपा और कांग्रेस के लिए नाक की सीट बन गई है। दोनो ही दल लागातार क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने में लगे हुए है। चलिए आंकड़ों से जानते हैं क्या भाजपा लगाएगी जीत की हैट्रिक या कांग्रेस करेंगी कमाल?
2019 विधानसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा ने अपने सिटिंग विधायक सुधाकर कोहले का टिकट काटकर पूर्व विधायक मोहन मते को चुनावी मैदान में उतारा। वहीं कांग्रेस ने गिरीश पांडव को अपना उम्मीदवार बनाया था। चुनाव बेहद दिलचस्प हुआ, मते ने बेहद कड़े मुकाबले में पांडव को हराया। भाजपा उम्मीदवार को जहां 84,339 वोट मिले, वहीं पांडव 80,216 वोट हासिल कर सके। इसी के तहत भाजपा चार हज़ार वोटो से सीट जीत गई।
विधानसभा का इतिहास:
दक्षिण नागपुर विधानसभा सीट का निर्माण 1978 के परिसीमन में किया गया। उसी साल यहां विधानसभा चुनाव में हुए। जिसपर भाजपा के वरिष्ठ नेता गोविन्दराव वांजरी को जीत मिली थी। इस सीट पर अभी तक 11 बार विधानसभा के चुनाव हुए हैं। जिसमें एक उपचुनाव भी शामिल है। 11 चुनावों में से सात पर कांग्रेस और चार पर भाजपा को जीत मिली है। पंजाब और तमिलनाडु के राज्यपाल रहे बनवारीलाल पुरोहित भी यहां से एक बार चुनाव जीत चुके हैं। हालांकि, तब उन्हें कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लडा था।
विधानसभा का जातियां समीकरण:
2011 की जनगणना के अनुसार, विधानसभा में 372455 लोग हैं। जिसमें 83,095 अनुसूचित जाति, 20708 अनुसूचित जनजाति शामिल है। इसी के साथ 5582 मुस्लिम भी शामिल है। जो कुल जनसंख्या का 1.3 प्रतिशत है। हालांकि, 2024 में इनकी जनसंख्या में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है। दक्षिण नागपुर एक हिन्दू बहुल विधानसभा सीट है। हालांकि, यहां बौद्ध धर्म को मानने वाले भी लोग अच्छी खासी स्थिती में हैं।
भाजपा की प्रयोग शाला
दक्षिण नागपुर विधानसभा सीट भारतीय जनता पार्टी की प्रयोगशाला मानी जाती है। भाजपा अपने तमाम प्रयोग इसी विधानसभा क्षेत्र में करती हुई दिखाई देती है। इसका इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि, भाजपा ने यहां कभी भी अपने सिटिंग विधायक को लगातार दो बार टिकट नहीं दिया है। 1995 में भाजपा के अशोक वाडिभास्मे पहली बार चुनाव जीत, लेकिन अगले चुनाव में उनका टिकट काटकर मोहन मते को दे दिया गया। वहीं 2004 के चुनाव में मते का भी टिकट काट दिया गया। 2014 में भाजपा ने सुधाकर कोहले को टिकट दिया उन्हें जीत मिली। वहीं 2019 के विधानसभा चुनाव में मते का टिकट काट कर पूर्व विधायक मोहन मते को दे दिया। फिलहाल मते यहां से तिसरी बार चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में लगे हुए हैं।
भाजपा-कांग्रेस के लिए चुनाव नहीं आसान
वर्तमान में भाजपा के लिए यह सीट एक कठिन सीट दिखाई दे रही है। पिछले विधानसभा चुनाव और बीते पांच सालों में बदली स्थिति सहित नागपुर में पिछले दो साल लगातार आई बाढ़ ने भाजपा सहित विधायक के प्रति असंतोष है। वहीं विधानसभा में चल रहे सड़कों के काम सहित बारिश के दौरान घरों में घुसे पानी से नाराजगी और बढ़ी हुई दिखाई दी। हालांकि, कांग्रेस के लिए भी सीट आसान दिखाई नहीं दे रही है। वर्तमान में कांग्रेस के पास फिलहाल ऐसा कोई नेता दिखाई नहीं पड़ रहा जो चुनाव में मजबूती से लड़ सके। केवल भाजपा के प्रति असंतोष यही एक बड़ा मुद्दा या कहें उम्मीदवार उसके पास है। कई नेता या कहें पूर्व सांसद, पूर्व विधायक पुत्र लगातार सीट पर अपना दावा कर रहे हैं। वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को मिलने वाले वोटो में जो कमी आई हैं उसको देखते हुए कांग्रेस उत्साहित जरूर हैं लेकिन इसके बावजूद चुनाव में जीत आसान नहीं है।

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