सावरकर की जयंती को गौरव दिवस के रूप में मनाना स्वतंत्र सेनानियों का अपमान, नक्सलियों ने जारी किया पत्र
गडचिरोली: नक्सलियों ने वीर सावरकर की जयंती को गौरव दिवस के रूप में मानने को लेकर राज्य सरकार की निंदा की है। नक्सलियों ने सरकार के इस कदम को स्वतंत्र सेनानियों का अपमान बताते हुए, जिस व्यक्ति ने अंग्रेजो से पांच बार माफ़ी मांगकर स्वतंत्र आंदोलन में उनका साथ दिया उसके जन्मदिन को गौरव दिवस मानना देशद्रोष और आजादी के लिए अपनी जान देने वालो का अपमान है।" नक्सलियों ने अपने पत्र के माध्यम से बुद्धिजीवियों को इस निर्णय का विरोध करने की अपील की है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के दंडकारण्य वेस्ट सब जोनल ब्यूरो के प्रवक्ता श्रीनिवास द्वारा जारी पत्र में कहा, "जब से मोदी सत्ता में आए हैं। तभी से देश का भगवाकरण हो रहा है। सावरकर प्रारंभिक काल में देश के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय थे। लेकिन, अंग्रेजों द्वारा पकड़े जाने के बाद उन्हें अंडमान में काले पानी की सजा सुनाई गई। फिर उसने अपना रुख बदल लिया। उन्होंने अंग्रेजों से क्षमा मांग कर स्वयं को बरी कर लिया।"
नक्सलियों ने अपने पत्र में आगे कहा, "वह नहीं रुके उन्होंने हिंदू महासभा जैसे संगठनों को बढ़ावा देकर 'भारत छोड़ो' आंदोलन में अंग्रेजों का साथ दिया। 1923 में लिखी गई 'हिंदुत्व' पुस्तक में धर्म पर आधारित राष्ट्र की अवधारणा प्रस्तुत की गई थी। हिंदू, मुस्लिम नफरत बढ़ी। एक तरफ भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस जैसे योद्धाओं ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी। दूसरी ओर सावरकर ने देश में नफरत फैलाकर अंग्रेजों का साथ दिया।"
नक्सलियों ने शिंदे-फडणवीस सरकार पर हमला करते हुए कहा, "देश के साथ गद्दारी करने वाले ऐसे लोगों के जन्मदिन को एकनाथ शिंदे की सरकार 'गौरव दिवस' के रूप में मनाने जा रही है। यह फैसला सच्चे स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान है।" इसी के साथ नक्सलियों ने कहा कि, "सरकार के इस निर्णय का देश के बुद्धिजीवियों को विरोध करना चाहिए।"
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