Gadchiroli: नक्सल प्रभावित गडचिरोली में वनोपज खरीदने समितियों के पास धन नहीं
एटापल्ली: गड़चिरोली यह जिला जंगल के व्याप्त है. और इस जिले के आदिवासियों का जीवन अधिकत्तर वनोपज पर ही निर्भर रहता है. स्थानीय आदिवासी जंगलों से वनोपज चुनकर वनप्रबंधन समितियों को बेचते है. मात्र जिले के आखरी छोर पर बसे एटापल्ली तहसील की अनेक वनप्रबंधन समितियों के पास निधि ही उपलब्ध नहीं होने के कारण वह स्थानीय नागरिकों से वनोपज नहीं खरीद पा रहे है. जिससे आदिवासियों को मजबूरी में छग के व्यापारियों को अल्प किमत में वनोपज बेचने की नौबत आन पड़ी है. वहीं व्यापारी भी अल्प दाम में खरीदकर आदिवासियों की वित्तीय लुट कर रहे है. जिससे वनविभाग इस ओर गंभीरता से ध्यान देकर वन प्रबंधन समितियों के खाते में निधि जमा करने की मांग की जा रही है. साथ ही वन प्रबंधन समितियां स्थानीय नागरिकों से वनोपज खरीदे, ऐसी भी बात कही जा रही है.
जंगल पर निर्भर होता है आदिवासियों का जीवन
एटापल्ली यह तहसील पुरी तरह आदिवासी बहुल और जंगल क्षेत्र में बसी है. इस तहसील में किसी भी तरह का उद्योग नहीं होने के कारण अधिकत्तर लोग खेती व्यवसाय कर अपना जीवनयापन करते है. मात्र इस तहसील के आदिवासी नागरिक बारह माह जंगल से मिलनेवाले वनोपज पर ही अपना जीवनयापन करते है. स्थानीय नागरिक जंगल से महुआ फुल, महुआ बीज, हिरड़ा, बेहला, तेंदुफल, चारा समेत अन्य वनोपज का संकलन करते है. वनोपज बेचकर मिलनेवाले पैसों से अपने जीवनयापन की सामग्री खरीदते है. जिससे दुर्गम क्षेत्र के आदिवासियों का जीवन जंगल पर निर्भर होता है.
दुर्गम क्षेत्र में पहुंच रहे छग के व्यापारी
वन प्रबंधन समितियां आदिवासी नागरिकों से वनोपज नहीं खरीद पा रहे है. इसका लाभ उठाते हुए एटापल्ली तहसील से सटे छत्तीसगढ़ राज्य के व्यापारी इस तहसील के ग्रामीण और दुर्गम क्षेत्र में पहुंचकर स्थानीय आदिवासी नागरिकों से वनोपज खरीद रहे है. छग के व्यापारी इस क्षेत्र के आदिवासियों की अज्ञानता का लाभ उठाते हुए कम दाम में वनोपज खरीदकर आदिवासियों की वित्तीय लुट करते दिखाई दे रहे है. यह सिलसिला पिछले अनेक वर्षो से शुरू है. जिससे वनविभाग इस ओर गंभीरता से ध्यान देकर आदिवासियों द्वारा संकलित किया गया वनोपज खदीकर उचित मुआवजा दे, ऐसी मांग की जा रही है.
वनविभाग को ध्यान देने की आवश्यकता
पिछले कुछ वर्षो से जिले से सटे छत्तीसगढ़ राज्य के व्यापारी गड़चिरोली जिले के सीमावर्ती इलाकों में पहुंचकर स्थानीय आदिवासी नागरिकों से उनके द्वारा संकलन किया गया वनोपज अल्प दाम में खरीद रहे है. यह सिलसिला काफी दिनों से शुरू है. लेकिन दुसरी ओर वनविभाग द्वारा वनोपज पर आधारित प्रकल्प शुरू नहीं किए जाने के कारण बाहर राज्य के व्यापारी स्थानीय लोगों की वित्तीय लुट कर रहे है. जिससे वनविभाग को ध्यान देने की आवश्यकता है.
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