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Nagpur

राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय, गौरवशाली 100 साल


राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय चार अगस्त 2023 अपनी शताब्दी स्थापना दिवस मनाने वाला है। 1920 में लिए निर्णय और जेआरडी टाटा द्वारा दान किये गए एक लाख रुपये की राशि की मदद से 1923 में विश्वविद्यालय को स्थापित किया गया। अपने 100 साल के इतिहास में विश्वविद्यालय ने कई कीर्तिमान अपने नाम किया। आइए जानते है विश्वविद्यालय का 100 साल का स्वर्णिम सफर

19वीं सदी की शुरुआत में मध्य भारत में एक विश्वविद्यालय स्थापित करने की मांग की जा रही थी। करीब 1914 में तत्कालीन अंग्रेजी सरकार ने विश्वविद्यालय स्थापित करने के लिए सैडलर आयोग की स्थापना की। आयोग की रिपोर्ट के बाद एक आधिकारिक समिति का गठन किया गया और एक विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए प्रारंभिक प्रयास शुरू किए गए। 1920 के समय छत्तीसगढ़, जबलपुर, रायपुर, विदर्भ और वन्हाड़ प्रांतों के विशाल क्षेत्रों के लिए एक विश्वविद्यालय स्थापित करने का निर्णय लिया गया। सन 1923 में पारित अधिनियम के अनुसार नागपुर विश्वविद्यालय अस्तित्व में आया। विश्वविद्यालय स्थापित करने में तत्कालीन मध्य प्रदेश सरकार और उसके शिक्षा मंत्री राव बहादुर एनके केलकर ने प्रमुख भूमिका निभाई।

विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद सर फ्रैंक स्ली को चांसलर और सर बिपिन कृष्ण बोस को संस्थापक कुलपति बनाया गया। विश्वविद्यालय कोई सरकारी विभाग नहीं है. 'विश्वविद्यालय का मुख्य उद्देश्य और कार्य अनुसंधान को पढ़ाना और बढ़ावा देना है।' स्वतंत्रता-पूर्व काल में विश्वविद्यालय नीति के ये मुख्य सिद्धांत थे। विश्वविद्यालय की शुरुआत बहुत ही सादगी से हुई। जब विश्वविद्यालय की स्थापना हुई तो सबसे पहले दो महत्वपूर्ण पद सृजित किये गये। एक कुलपति का और दूसरा कोषाध्यक्ष। बिपिन कृष्ण बोस पहले कुलपति तक्ष वीएम केलकर पहले कोषाध्यक्ष थे। विश्वविद्यालय की मूल संरचना सर जमशेदजी टाटा द्वारा दिए गए एक लाख रुपये के दान से बनी थी।

1935 के आसपास विश्वविद्यालय ने एक प्रकार की स्थिरता हासिल कर ली। चूंकि विश्वविद्यालय के लिए कोई जगह नहीं थी, इसलिए नागपुर के लोगों के परोपकार की अपील की गई। तब नागपुर सहित आसपास के कई प्रमुख लोगों ने विश्वविद्यालय को जमीन दान में दी। जिसमें राव बहादुर लक्ष्मीनारायण प्रमुख थे। आज जहां महात्मा फुले शिक्षण परिसर है, वह उनके द्वारा दान दी गई जमीन पर स्थापित है। वर्तमान में विश्वविद्यालय  263 एकड़ भूमि में फैला विश्वविद्यालय का भव्य परिसर है। यह क्षेत्र कई आकर्षक और सुंदर संरचनाओं से युक्त है।

आज विस्वविद्यालय में 512 महाविद्यलय संलग्न है, वहीं हजारो की संख्या में वद्यार्थी पढ़ रहे हैं। लेकिन स्थापना के समय इससे सम्बद्ध इतने ही महाविद्यालय थे कि उंगलियों पर गिने जा सकें। इनमें मॉरिस कॉलेज, हिस्लॉप कॉलेज, किंग एडवर्ड कॉलेज, रॉबर्टसन कॉलेज और स्पेंसर ट्रेनिंग कॉलेज शामिल थे। विश्वविद्यालय की प्रारंभिक तस्वीर में 6 कॉलेज, 917 छात्र और 4 संकाय थे। वहीं 1983 तक दस वर्ष की अवधि के दौरान संबद्ध महाविद्यालयों की संख्या बढ़कर 139 हो गई।

उस समय विश्वविद्यालय के नियंत्रण में चार महाविद्यालय तथा 31 शैक्षणिक विभाग थे, पंजीकृत विद्यार्थी 63 हजार 140 थे तथा कुल परीक्षार्थियों की संख्या 1 लाख 13 हजार हो गयी थी। छात्रों की बढ़ती संख्या को देखते हुए 1 मई 1983 को नागपुर विश्वविद्यालय को विभाजित करते हुए अमरावती विश्वविद्यालय की स्थपना की है। उस समय विदर्भ के आठ जिलों में से चार जिले अमरावती विश्वविद्यालय के पास चले गये। 2 अक्टूबर 2011 को एक बार फिर चंद्रपुर, गडचिरोली के लिए अलग से गोंडवाना विश्वविद्यालय की स्थापना की गई।

स्थापना के समय विश्वविद्यालय का नाम केवल नागपुर विश्वविद्यालय था। 4 मई 2005 को राज्य सरकार ने नागपुर विश्वविद्यालय का नाम बदलकर राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय कर दिया गया। 13 दिसम्बर 2005 को तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख की मौजूदगी में नाम का औपचारिक उद्घाटन किया गया।