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कांग्रेस नेता छोटू भोयर की बढ़ी मुश्किलें, पूनम बैंक घोटाले में आपराधिक शाखा ने किया गिरफ्तार


नागपुर: कांग्रेस नेता और पूर्व पार्षद रविंद्र उर्फ़ छोटू भोयर की मुश्किलें बढ़ गई है। पूनम अर्बन क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी मामले में आर्थिक अपराध शाखा ने भोयर को गिरफ्तार कर लिया। बुधवार सुबह उनके निवास से उन्हें गिरफ्तार किया गया है। 

क्या है पूरा मामला?

भोयर पूनम अर्बन क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी के निदेशक थे। उनके कार्यकाल के दौरान बैंक से आठ करोड़ रुपये की जमा राशि निकाली गई। लेआउट तैयार करने के बाद सोसायटी की ओर से भूखंड बेचा गया। कई लोगों के नाम पर ऋण वितरित किये गये। ऑडिट से पता चला कि मृत लोगों के नाम पर भी ऋण लिया गया था। बैंक के दिवालिया होने के बाद 2016 से 2019 की अवधि के लिए ऑडिट किया गया। उस समय भोयर निदेशक मंडल में नहीं थे। इसलिए उनके अलावा चार अन्य लोगों के खिलाफ भी वित्तीय धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया। नवगठित निदेशक मंडल ने 2010 से लेखापरीक्षा शुरू करने का निर्णय लिया। यह पाया गया कि भोयर सभी घोटालों के 'मास्टर' थे। सरकारी लेखा परीक्षक ने उनके खिलाफ मामला दर्ज किया था।

कट्टर स्वयंसेवक और गडकरी के बड़े समर्थक 

रविन्द्र भोयर एक स्वयंसेवक हैं। वे संघ के मुख्यालय रेशिमबाग स्थित स्मृति मंदिर के बगल में रहते हैं। वह रेशिमबाग वार्ड से भाजपा की टिकट पर कई बार पार्षद चुने गए। यही नहीं भोयर को कभी केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के कट्टर समर्थक भी माना जाता था। हालांकि, जब भाजपा ने नागपुर सुधार प्रन्यास के विश्वस्थ के तौर पर उन्हें हटाने का जब निर्णय लिया गया, उन्होंने गडकरी से मध्यस्था करने की बात की थी, लेकिन केंद्रीय मंत्री द्वारा दखल नहीं दिए जाने के कारण वह गडकरी से नाराज हो गए थे। जहां 2022 में वह भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गए थे। 

कांग्रेस ने बावनकुले के खिलाफ दिया टिकट 

भाजपा से नाराज चल रहे भोयर पर कांग्रेस ने दांव खेला और भाजपा नेता चंद्रशेखर बावनकुले के खिलाफ विधान परिषद् चुनाव में उन्हें मैदान में उतारा।कांग्रेस ने भाजपा के वोटों को विभाजित करने के लिए भोयर को मैदान में उतारने का फैसला किया था। इसके चलते कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले की पार्टी के भीतर विरोधियों द्वारा भारी आलोचना की गई। उन पर एक स्वयंसेवक को टिकट देने का भी आरोप लगाया गया। स्थानीय कांग्रेस नेताओं ने अंत तक भोयर की उम्मीदवारी स्वीकार नहीं की। अंतिम चरण में कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस लेने का निर्णय लिया। कांग्रेस ने उसी चुनाव में खड़े एक स्वतंत्र उम्मीदवार मंगेश देशमुख को अपना समर्थन देने की आधिकारिक घोषणा की थी। हालांकि,कांग्रेस को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।