पत्नी-पत्नी के गुजारा भत्ता को लेकर हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी,अदालत ने कहा क़ानून लिंग में अंतर नहीं करता
नागपुर: हिंदू मैरेज एक्ट,विवाह के बाद अधिकार,जिम्मेदारी और दायित्व को लागू किये जाने का हिंदुओं के लिए क़ानून है.इस क़ानून के अनुसार कमाई का जरिया उपलब्ध न होने की सूरत में पत्नी अपने कामकाज़ी पति से उदर निर्वाह की मांग कर सकती है.लेकिन मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने एक मामले की सुनवाई में हिंदू मैरेज एक्ट को लेकर अहम टिप्पणी की है.हाईकोर्ट ने क़ानून की व्याख्या करते हुआ कहा है की इस क़ानून के अंतर्गत पति भी अपनी पत्नी से उदर निर्वाह हासिल करने का हक़दार है.न्यायाधीश रोहित देव और ऊर्मिला जोशी की खंडपीठ ने इस संबंध में एक निर्णय दिया है.हिंदू मैरेज एक्ट की कलम 25 जो उदर निर्वाह देने और कलम 24 में न्यायालय में याचिका प्रलंबित होने की सूरत में अस्थाई उदर निर्वाह दिए जाने का प्रावधान है.जिस तरह से आय का साधन न होने की सूरत में पत्नी अपने पति से उदर निर्वाह हासिल कर सकती है उसी तरह आय का साधन न होने प[पर पति भी अपनी कामकाज़ी पत्नी से उदर निर्वाह हासिल करने का हक़दार है.क़ानून में यह एक परोपकारी प्रावधान है.22 जुलाई 2016 को अमरावती पारिवारिक न्यायालय ने पत्नी को मासिक 10 हजार रूपए उदर निर्वाह दिए जाने का आदेश दिया था.जिसके बाद पुणे में रहने वाले पति ने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की थी.अदालत ने इस याचिका को ख़ारिज करते हुए क़ानून में अंतर्भूत प्रावधानों की व्याख्या को प्रस्तुत किया।
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