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Nagpur: मेडिकल में सामने आए 124 कुंवारी माताओं के मामले, बढ़ रही नाबालिग गर्भावस्था, समाज के लिए चिंता का विषय


नागपुर: गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल (GMCH) से सामने आए आंकड़े समाज के लिए एक गंभीर चिंता का विषय हैं। पिछले डेढ़ साल में GMCH में 124 अविवाहित महिलाओं ने बच्चों को जन्म दिया है। मेडिकल अधीक्षक डॉ. अविनाश गावंडे के अनुसार कुंवारी माताओं की यह बढ़ती संख्या समाज के हर वर्ग में व्याप्त है, जो केवल एक विशेष क्षेत्र या वर्ग तक सीमित नहीं है।

आंकड़ों पर एक नजर:

18 वर्ष से कम आयु की कुंवारी माताएं: 67

19 से 21 वर्ष की अविवाहित गर्भवती युवतियां: 30

22 से 25 वर्ष की कुंवारी माताएं: 21

26 वर्ष से अधिक आयु की अविवाहित गर्भवती युवतियां: 6

डॉ अविनाश गावंडे के अनुसार समय के साथ कुंवारी माताओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। ये समस्या समाज के किसी एक वर्ग या ग्रामीण या शहरी भाग तक सिमित नहीं है, बल्कि सभी वर्ग में है। बस फर्क ये है की मेडिकल कॉलेज में आने वाले ज्यादातर केस लोअर मिडिल क्लास के है,जबकि अपर मिडिल क्लास या अपर क्लास में इस तरह की स्थिति में लड़कियां या युवती निजी अस्पताल में जाती है। डॉक्टरों के लिए चुनौती और बच्चों के स्वास्थ्य पर असर:कुंवारी माताओं के मामलों में डॉक्टरों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कम उम्र की लड़कियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ उनके गर्भ में पल रहे शिशु के भविष्य पर भी निर्णय लेना कठिन होता है। कई बार डॉक्टर ही पूरे परिवार की काउंसलिंग कर उन्हें सही मार्गदर्शन देते हैं।चिंताजनक बात यह है कि कम उम्र में गर्भवती होने वाली लड़कियों के साथ-साथ उनके बच्चों के स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

रिपोर्ट के अनुसार:

54% मामलों में बच्चे कम वजन (लो बर्थ वेट) के पैदा हुए

16% मामलों में गर्भपात हुआ

17% मामलों में बच्चे सामान्य से कम वजन के थे

डॉ. अविनाश गावंडे ने इस समस्या पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कुछ महत्वपूर्ण समाधान भी सुझाए हैं। उनका कहना है कि नाबालिग लड़कियों और अविवाहित युवतियों के गर्भवती होने के मुद्दे पर समाज में खुलकर बात करने और जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है। बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ इस विषय पर सही जानकारी देना जरूरी है। इसके अलावा, बच्चों और परिवार के बीच मजबूत भावनात्मक संबंध (इमोशनल बॉन्डिंग) का होना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह समस्या केवल स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज के लिए एक गंभीर चुनौती बन सकती है, इसलिए समय रहते इस पर ध्यान देना और जागरूकता फैलाना आवश्यक है।