मराठी भाषा में मेडिकल की शिक्षा दिए जाने के फ़ैसले का साहित्यक्षेत्र ने किया स्वागत

नागपुर- मराठी भाषा में मेडिकल शिक्षा दिए जाने के निर्णय का मराठी भाषा के साहित्यकारों ने स्वागत किया है.वरिष्ठ साहित्यकार और भाषा समिति के सलाहकार श्रीपाद जोशी ने कहा की बीते 90 वर्षो से उनके जैसे लोग मराठी भाषा को उचित सम्मान मिलने की लड़ाई लड़ रहे है.यह उनके रूप से तीसरी पीढ़ी इस काम में लगी है.हमें यह समझना होगा की कभी न कभी अंग्रेजी की उंगली को छोड़ना पड़ेगा। नई शिक्षा नीति के तहत स्वभाषा में शिक्षा देने का निर्णय लिया गया है.जिसका निश्चित तौर पर स्वागत किया जाना चाहिए। स्वभाषा में उच्च शिक्षा दिए जाने का निर्णय बेहतर है.हम मराठी विश्वविद्यालय की जो मांग कर रहे है वह इसी के लिए है.हमने सरकार को निवेदन दिया है.जिसे लेकर एक असरकारी समिति को स्थापित किये जाने का निर्णय लेने का आश्वासन पिछली तीन सरकार दे चुकी है.मध्यप्रदेश अगर हिंदी में उच्च शिक्षा देने का निर्णय ले सकता है तो कभी न कभी इस देश को स्वभाषा में शिक्षा देने का निर्णय लेना होगा। भारत विश्व में एकमात्र ऐसा देश है जो आजादी को 75 वर्ष मिलने के बाद भी स्वभाषा में शिक्षा देने में असफल साबित हुआ है.ऐसा सिर्फ अंग्रेजी के दबाव के चलते हुआ है लेकिन कभी न कभी किसी न किसी राजनीतिक दल को पार्टी भावना से ऊपर उठकर यह निर्णय लेना ही होगा। अंग्रेजी स्पर्धा और सफलता की भाषा है ऐसा प्रचार होता है लेकिन यह हकीकत नहीं है.विश्व के कई देश अपनी-अपनी भाषाओं में ही शिक्षा दे रहे है.अंग्रेजी की उंगली छोड़ने में काफ़ी देरी हुई है.मराठी में शिक्षा दिए जाने के चलते एक पीढ़ी को दिक्कत होगी यह तय है लेकिन यह भी सुनिश्चित करना होगा की तकनीकी दिक्कतें न हो.सरकार को इस मद से निकलते हुए की हमने कोई बड़ा पराक्रमी काम किया है उसके बजाये विशेषज्ञों की सलाह लेकर काम करना चाहिए।

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