नागपुर पुलिस के दो श्वानों ने जयपुर में पूरी की नारकोटिक्स और हथियार की ट्रेनिंग

नागपुर: विस्फोटकों की जांच या फिर किसी आपराधिक घटना में सुराग तलाशने के काम में लाए जाने वाले डॉग स्क्वाड में शामिल श्वानों को कड़े परीक्षण से गुजरना पड़ता है। एक श्वान की ट्रेनिंग पर सरकार लाखों रुपए खर्च करती हैं। करीब 6 से 9 महीने के लंबे और कठिन प्रशिक्षण के बाद इन श्वानों को इस तरह से तराशा जाता है कि वह हर परीक्षा में पास हो जाए। प्रशिक्षण पूरा होने के बाद श्वानों को उस यूनिट में दोबारा भेज दिया जाता है जिस यूनिट से उन्हें ट्रेनिंग के लिए भेजा जाता है। नागपुर शहर पुलिस विभाग के डॉग यूनिट के दो श्वानों को राजस्थान के अलवर में 6 महीने की नारकोटिक्स की ट्रेनिंग के लिए भेजा गया था जो कि ट्रेनिंग पूरी कर हालही में पुलिस विभाग के डॉग यूनिट में लौटें है.
मैक्स
नागपुर पुलिस दल की डॉग स्क्वायड यूनिट से 6 महीने की ट्रेनिंग के लिए 2 श्वानों मैक्स और सूर्या को राजस्थान के अलवर में भेजा गया था। करीब 6 महीने की नारकोटिक्स और हथियारों से जुड़ी ट्रेनिंग को पूरा कर ये दोनों श्वान दोबारा नागपुर पुलिस दल डॉग यूनिट में वापस लौटे हैं। शहर पुलिस दल के डॉग स्क्वायड में करीब 9 श्वान हैं जिसमें रेवान और सिग्मा का भी समावेश है जिन्हें भी जल्द ही ट्रेनिंग के लिए भेजा जाने वाला है। नागपुर पहुंचे मैक्स और सूर्या अपनी ट्रेनिंग पूरी कर ड्यूटी पर तैनात हो चुके हैं। ये दोनों जर्मन शेफर्ड नस्ल के डॉग हैं। इनका उपयोग नारकोटिक्स विभाग द्वारा ड्रग्स की तलाश करने लिए किया जाता है। इनमें सूंघने की जबरदस्त क्षमता अधिक होती है। ये श्वान बारिश गर्मी और ठंड में करीब 7 घंटे तक लगातार काम कर सकते हैं। और अपनी सूंघने की क्षमता के चलते ही यह किसी भी अपराधी या आरोपी को सूंघ कर उसका पता लगा लेते हैं। ये दोनों ही श्वान जब 3 से 4 महीने के थे तब उन्हें प्रशिक्षण के लिए भेजा गया था। जानकारों का मानना है कि जर्मन शेफर्ड, लैब्राडोर प्रजाति के बाद अब बेल्जियम मेलिनोइस श्वान भी पुलिस विभाग की पहली पसंद बन गए हैं।

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