'हम सेवा के लिए नहीं, न्याय दिलाने के लिए' महाराष्ट्र कानून विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में बोले प्रधान न्यायाधीश डी. वाई चंद्रचूड़

नागपुर: देश के मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी. वाई चंद्रचूड़ अपने न्याय और सेवा को लेकर बात कही है। उन्होने कहा कि, “सेवा और न्याय दोनों अलग-अलग हैं। सेवा करके हम पल भर के लिए किसी का दुख मिटा सकते हैं। लेकिन ऐसा करके हम उसे उसके न्याय के अधिकार से वंचित कर रहे हैं। इसलिए हमारी लड़ाई सेवा करने की नहीं, बल्कि न्याय पाने की होनी चाहिए।” महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी नागपुर का पहला दीक्षांत समारोह में शामिल होने शनिवार को उपराजधानी पहुंचे थे। जहां छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने यह बात कही।
चंद्रचूड़ ने कहा, “वकीलों को याद रखना चाहिए कि हम सेवाएं देकर किसी को न्याय नहीं दे सकते। सेवा कार्य महान है, इसमें कोई संदेह नहीं है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम उस व्यक्ति को उसके न्याय के अधिकार से वंचित कर रहे हैं। नतीजतन, हमारा काम न्याय हासिल करना होना चाहिए।”
चुप रहने से समस्या का समाधान नहीं
उन्होंने आगे कहा, "व्यवसाय करते समय सभी को भारतीय संविधान के मूल्यों को बनाए रखना चाहिए। यह नहीं भुलाया जा सकता कि संविधान ने सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक न्याय लाने की जिम्मेदारी दी है। हमें इन अधिकारों के लिए बोलना होगा। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने भी सलाह दी कि चुप रहने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता, इसलिए बोलना जरूरी है।

admin
News Admin