मंत्री के भाई की दखलअंदाजी से चंद्रपुर थर्मल पावर स्टेशन के ठेकेदारों में रोष

- पवन झबाडे
चंद्रपुर: राज्य सरकार में शामिल एक कद्दावर मंत्री के भाई की अत्यधिक दखलअंदाजी के चलते चंद्रपुर महाऔष्णिक विद्युत केंद्र (सीटीपीएस) अब ‘परली पावर स्टेशन’ की दिशा में अग्रसर होता दिखाई दे रहा है। स्थानीय ठेकेदारों का कहना है कि ठेके हासिल करने के लिए मंत्री के भाई द्वारा खुलेआम दबाव और दबंगई का सहारा लिया जा रहा है, जिससे छोटे-बड़े ठेकेदार बुरी तरह से त्रस्त हो गए हैं। हालात ऐसे बन चुके हैं कि छोटे ठेकेदारों को तो "बजट नहीं है" जैसे बहाने देकर मुख्य अभियंता कार्यालय में प्रवेश से ही रोक दिया गया है।
राज्य का सबसे बड़ा 2920 मेगावॉट उत्पादन क्षमता वाला चंद्रपुर थर्मल पावर स्टेशन इस समय आंतरिक अव्यवस्थाओं और हस्तक्षेपों से जूझ रहा है। यह गड़बड़ी सिर्फ इसलिए हो रही है ताकि सभी ठेके एक ही गुट को मिल सकें। महायुती सरकार के सत्ता में आने के बाद से नागपुर के एक प्रभावशाली मंत्री के भाई की इस पावर स्टेशन में गहरी पैठ बन चुकी है।
आरोप है कि यहां के हर छोटे-बड़े काम में उन्हीं की दखल होती है, जिससे वर्षों से ईमानदारी से काम कर रहे अनुभवी ठेकेदार हताश हो चुके हैं। पहले कभी भी इस पावर स्टेशन में इस तरह की ‘दबंगई’ नहीं देखी गई थी। ठेके निविदा प्रक्रिया के जरिए पारदर्शिता से मिलते थे। लेकिन अब स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है। चाहे बॉयलर क्लीनिंग हो या अन्य कोई कार्य, मंत्री के भाई का रवैया है - “हर ठेका मुझे ही चाहिए।” यह स्थिति बेहद खतरनाक बनती जा रही है।
स्थानीय ठेकेदारों का कहना है कि अगर यह हस्तक्षेप यूं ही जारी रहा तो चंद्रपुर का यह पावर स्टेशन भी जल्द ही परली थर्मल स्टेशन जैसी विफलता का शिकार बन सकता है। छोटे ठेकेदारों के लिए कार्यालय में प्रवेश पर रोक लगाई गये है ऐसा आरोपी ठेकेदार लगा रहे है। एक ठेकेदार ने नाम न लिखने की शर्त पर बताया कि पहले निविदा से संबंधित जानकारी, ऑर्डर कॉपी आदि के लिए मुख्य अभियंता कार्यालय में जाना आम प्रक्रिया थी। लेकिन अब ठेके की ऑर्डर सिर्फ ई-मेल या डाक के जरिए भेजी जाती है, और यह निर्देश स्पष्ट हैं कि “कार्यालय में आने की कोई आवश्यकता नहीं” – यानि एक तरह से प्रवेश पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई है।
दूसरी तरफ, मंत्री का भाई जब चाहे कार्यालय में प्रवेश करता है, अधिकारियों को निर्देश देता है कि यह काम किसे देना है और वह स्वयं अन्य ठेकेदारों के नाम पर कार्य भी लेता है। ठेकेदारोने अधिकारियों पर भी आरोप लगाया है कि वे मंत्री के भाई की बातों को ही अंतिम आदेश मानते हैं। इस स्थिति से ठेकेदारों में भारी असंतोष है। उनका कहना है कि अब यहां ठेकेदारी करना बेहद कठिन हो गया है। जब तक यह ‘राजकीय हस्तक्षेप’ बंद नहीं होता, तब तक चंद्रपुर का यह प्रतिष्ठित ऊर्जा केंद्र संकट में ही रहेगा।राजनीतिक दृष्टिकोण से यह मामला अब केवल प्रशासनिक नहीं रहा – यह सत्ता के दुरुपयोग और संस्थागत पारदर्शिता के पतन का उदाहरण बनता जा रहा है। यदि जल्द कार्रवाई नहीं हुई, तो ऊर्जा उत्पादन ही नहीं, चंद्रपुर की साख भी दांव पर लग सकती है।

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