पूर्व विधायक सुभाष धोटे ने लगाये 'मत चोरी' के आरोप, जांच की निष्पक्षता पर उठाए सवाल

- पवन झबाडे
चंद्रपुर: राजुरा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में ईरो नेट (ERONET) ऑनलाइन प्रणाली के माध्यम से फर्जी मतदाता पंजीकरण किए जाने का मामला सामने आया है। राजुरा तहसीलदार ने 19 अक्टूबर 2024 को राजुरा पुलिस स्टेशन में एफआईआर क्रमांक 0629 के तहत मामला दर्ज कराया था।
हालाँकि, चुनाव आयोग और संबंधित तकनीकी प्रणाली अभी तक उस ‘आईपी पते’ का पता नहीं लगा पाई हैं, जिसके जरिये यह फर्जी पंजीकरण किया गया था। जब इस पर मतदाता पंजीकरण अधिकारियों से सवाल किया गया तो उन्होंने जानकारी देने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि यह विवरण केवल राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के पास उपलब्ध है और ‘ईरो लॉगिन’ में नहीं है। लेकिन, पूर्व विधायक व कांग्रेस जिलाध्यक्ष सुभाष धोटे का आरोप है कि यह जानकारी वहां से भी उपलब्ध नहीं कराई गई।
छह माह में 57,955 वोटों की संदिग्ध वृद्धि
धोटे ने आरोप लगाया कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव 2024 के बीच महज़ 6 महीनों में चंद्रपुर जिले में वोटों की संख्या में असामान्य वृद्धि हुई है।
आंकड़े इस प्रकार हैं -
विधानसभा क्षेत्र लोकसभा 2024 वोट विधानसभा 2024 वोट वृद्धि
राजुरा 3,13,611 3,25,278 +11,667
चंद्रपुर 3,56,736 3,73,927 +17,191
बल्लारपुर 3,01,242 3,12,355 +11,113
ब्रह्मपुरी 2,71,478 2,77,666 +6,188
चिमूर 2,77,095 2,80,827 +3,732
वरोरा 2,71,985 2,82,049 +10,064
कुल वृद्धि: 57,955 मतदाता
लोकसभा चुनाव 2024 में जिले में कुल मतदाता संख्या 17,92,147 थी, जो विधानसभा चुनाव 2024 में बढ़कर 18,50,102 हो गई।
राजुरा में 6,853 फर्जी मतदाता नाम हटे, फिर भी कार्रवाई अधूरी
कांग्रेस की शिकायत के बाद 3 अक्टूबर 2024 के बाद राजुरा विधानसभा क्षेत्र से 6,853 फर्जी मतदाताओं के नाम सूची से हटाए गए। इसके बावजूद, धोटे का कहना है कि प्रशासनिक अधिकारियों को शिकायत देने के बाद भी अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
मुख्य सवाल:
1. आईपी एड्रेस ट्रेस क्यों नहीं हो रहा? – तकनीकी जांच में देरी चुनावी पारदर्शिता पर सवाल उठाती है।
2. 6 माह में इतनी वोट वृद्धि कैसे? – क्या यह सामान्य जनसंख्या वृद्धि है या संगठित फर्जीवाड़ा?
3. फर्जी मतदाता हटाने के बाद भी जांच धीमी क्यों? – प्रशासनिक इच्छाशक्ति पर सवाल।
राजुरा और पूरे चंद्रपुर जिले में हुई मतदाता संख्या में असामान्य वृद्धि, फर्जी पंजीकरण के आरोप और जांच में ढिलाई — यह सब चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गहरा सवाल खड़े कर रहा है। यदि समय पर ठोस और पारदर्शी जांच नहीं हुई, तो यह मामला लोकतंत्र में मतदाता विश्वास पर सीधा आघात साबित हो सकता है।

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