राष्ट्रीय सुरक्षा, स्वदेशी और 'लोकतांत्रिक परिवर्तन' पर RSS प्रमुख मोहन भागवत का शताब्दी संदेश

नागपुर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने गुरुवार को नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में विजयादशमी उत्सव (संघ के शताब्दी वर्ष समारोह) के अवसर पर देश और दुनिया को एक व्यापक संदेश दिया। अपने वार्षिक संबोधन में, उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखते हुए आर्थिक आत्मनिर्भरता और पड़ोसी देशों में शांतिपूर्ण, लोकतांत्रिक परिवर्तन की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति पर स्पष्ट रुख
सरसंघचालक मोहन भागवत ने हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले का उल्लेख करते हुए देश की सुरक्षा चुनौतियों पर सीधा ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने कहा कि सीमा पार से आए आतंकवादियों ने 'धर्म पूछकर' नागरिकों की हत्या की, जिसके बाद सरकार और सेना ने पूरी तैयारी के साथ 'पुरजोर उत्तर' दिया। भागवत ने इस घटना को एक महत्वपूर्ण सबक बताते हुए कहा कि इससे यह पता चला कि वैश्विक पटल पर हमारे सच्चे दोस्त कौन हैं और कौन नहीं। उन्होंने स्पष्ट किया कि भले ही भारत सभी के प्रति मित्रवत भाव रखता है, फिर भी देश को अपनी सुरक्षा क्षमताओं के प्रति और अधिक सजग और समर्थ रहना होगा। उन्होंने आंतरिक सुरक्षा के संदर्भ में नक्सलवाद के खिलाफ सरकार की कठोर कार्रवाई की सराहना की, लेकिन साथ ही प्रभावित क्षेत्रों में अन्याय और शोषण को समाप्त कर विकास और सद्भाव सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर भी बल दिया।
'स्वदेशी' और आर्थिक स्वावलंबन का आह्वान
आर्थिक मोर्चे पर बोलते हुए, संघ प्रमुख ने स्वदेशी और आत्मनिर्भरता के मंत्र को दोहराया। उन्होंने अमेरिकी टैरिफ नीति जैसे वैश्विक आर्थिक दबावों का ज़िक्र किया और चेतावनी दी कि आज दुनिया एक-दूसरे पर निर्भर है, लेकिन यह निर्भरता देश के लिए मजबूरी नहीं बननी चाहिए। उन्होंने कहा, "स्वावलंबन ही एकमात्र विकल्प है।" भागवत ने भारत से आग्रह किया कि वह एक 'आत्मनिर्भर भारत' के निर्माण की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़े ताकि देश अपनी इच्छाशक्ति से अंतर्राष्ट्रीय संबंध स्थापित कर सके, न कि किसी मजबूरी के तहत।
पड़ोसी देशों में हिंसक आंदोलनों पर चिंता
भागवत ने पड़ोसी देशों में जारी राजनीतिक अस्थिरता को भारत के लिए चिंता का विषय बताया। उन्होंने श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों में हिंसक विरोध प्रदर्शनों के चलते हुए शासन परिवर्तन का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि हिंसक आंदोलनों से कभी भी वांछित उद्देश्य प्राप्त नहीं होते, बल्कि इससे केवल अराजकता पैदा होती है और बाहरी स्वार्थी ताकतों को अस्थिरता का लाभ उठाने का मौका मिल जाता है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि समाज में कोई भी सकारात्मक और स्थायी बदलाव केवल प्रजातांत्रिक (लोकतांत्रिक) तरीकों से ही संभव है, क्योंकि भारत की संस्कृति और परंपरा ही विविधता में एकता की पक्षधर रही है।
पर्यावरण और महापुरुषों को श्रद्धांजलि
अपने संबोधन के अंत में, भागवत ने पर्यावरण संरक्षण को एक गंभीर विषय बताया। उन्होंने हिमालय क्षेत्र में बढ़ रहे प्राकृतिक प्रकोपों (जैसे भूस्खलन और अनियमित वर्षा) को 'खतरे की घंटी' करार दिया और वर्तमान भौतिकवादी विकास मॉडल की कमियों को उजागर करते हुए इस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता पर बल दिया। अंत में, उन्होंने सादगी और राष्ट्र सेवा के प्रतीक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को उनकी जयंती पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद सहित महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री और संघ के कई वरिष्ठ पदाधिकारी उपस्थित रहे।

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