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Nagpur

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा निर्णय, 86 हजार एकड़ झुड़पी जंगल को वन क्षेत्र किया घोषित, कहा- 1980 के बाद से सभी आवंटन अतिक्रमण, दो साल में हटाएं


नागपुर: महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के आदेश को निरस्त करते हुए विदर्भ के 86,409 हेक्टेयरझुड़पी जंगल को वन क्षेत्र घोषित कर दिया है। इसी के साथ सर्वोच्च न्यायलय ने महाराष्ट्र और केंद्र सरकार को गैर-वनीय उद्देश्यों के लिए भूमि परिवर्तन की योजना संयुक्त रूप से तैयार करने का निर्देश दिया। इसी के साथ अदालत ने 1980 के बाद से जितनी भी झुड़पी जंगल की जमीन को अन्य कामों के इस्तेमाल के किये आवंटन को अतिक्रमण बताया है, साथ ही सभी दो साल में भूमि से अतिक्रमण हटाने का निर्देश भी दिया है। अदालत के इस निर्णय से राज्य की फडणवीस सरकार को झटका लगा है।

विदर्भ क्षेत्र में 'झुड़पी जंगल' के रूप में जानी जाने वाली लगभग 86,409 हेक्टेयर भूमि को लेकर एक महत्वपूर्ण कानूनी विवाद चल रहा है। यह भूमि नागपुर, वर्धा, गडचिरोली, गोंदिया, भंडारा और चंद्रपुर जिलों में फैली हुई है।  झुड़पी जंगल के रूप में जानी जाने वाली भूमि पर बड़ी संख्य में लोग रहते हैं। यही नहीं कई विकास परियोजना भी इन भूमि पर प्रस्तावित है। हालांकि, वन भूमि होने के कारण इसमें बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता था।

2014 में देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने के बाद महाराष्ट्र सरकार ने 2014 से 2018 के बीच विभिन्न सरकारी प्रस्तावों के माध्यम से इन भूमि को 'वन' की श्रेणी से हटाने का प्रयास किया, ताकि विकास परियोजनाओं  के लिए इनका उपयोग किया जा सके। और जो लोग इन भूमि में रह रहे हैं उन्हें जमीन का हक़ दिया जा सके।  हालांकि, पर्यावरणविदों और आदिवासी समुदायों ने इसका विरोध किया, यह तर्क देते हुए कि ये भूमि पारंपरिक रूप से उनके उपयोग में रही हैं और इन्हें वन संरक्षण अधिनियम के तहत संरक्षित रहना चाहिए।

याचिका पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने अहम् निर्णय दिया। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अदालत ने विदर्भ के अंदर झुड़पी जंगल के नाम से जाने जानी वाली भूमि को वन क्षेत्र घोषित कर दिया। अपने आदेश ने अदालत ने महाराष्ट्र और केंद्र सरकार को गैर-वनीय उद्देश्यों के लिए भूमि परिवर्तन के लिए एक संयुक्त योजना बनाने का आदेश भी दिया। 

देखें सुप्रीम कोर्ट का पूरा निर्णय:

  • यह निर्देश दिया जाता है कि जुडपी जंगल की भूमि को वर्तमान कार्यवाही में इस न्यायालय के दिनांक 12 दिसंबर 1996 के आदेश के अनुसार वन भूमि माना जाएगा;
  • वर्तमान मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों में, हम निर्देश देते हैं कि अपवाद के रूप में, और किसी भी मामले के लिए इसे मिसाल के रूप में माने बिना, सक्षम प्राधिकारी द्वारा 12 दिसंबर 1996 तक आवंटित की गई जुडपी जंगल की भूमि और जिसके लिए भूमि वर्गीकरण में कोई बदलाव नहीं किया गया है, महाराष्ट्र राज्य को वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 की धारा 2 के तहत "वन क्षेत्रों की सूची" से हटाने के लिए अनुमोदन प्राप्त करना चाहिए;
  • हम निर्देश देते हैं कि महाराष्ट्र राज्य प्रत्येक जिले के लिए एक समेकित प्रस्ताव प्रस्तुत करेगा। हम स्पष्ट करते हैं कि वे सभी गतिविधियाँ जिनके लिए सक्षम प्राधिकारी द्वारा भूमि आवंटित की गई है, उन्हें साइट-विशिष्ट माना जाएगा। हम आगे स्पष्ट करते हैं कि राज्य सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि उपयोग की गई भूमि को भविष्य में किसी भी परिस्थिति में नहीं बदला जाएगा और हस्तांतरण केवल विरासत द्वारा किया जाएगा;
  • हम निर्देश देते हैं कि ऐसे प्रस्तावों की प्राप्ति पर, भारत संघ प्रतिपूरक वनरोपण या एनपीवी शुल्क जमा करने के लिए कोई शर्त लगाए बिना उस पर विचार करेगा और उसे मंजूरी देगा;
  • हम निर्देश देते हैं कि केंद्र सरकार और महाराष्ट्र राज्य आपसी परामर्श और सीईसी की पूर्व स्वीकृति के साथ, इस निर्णय की तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर गैर-वानिकी गतिविधियों के लिए जुडपी जंगल भूमि के मोड़ के प्रस्ताव को संसाधित करने के लिए एक प्रारूप तैयार करेंगे।
  • 12 दिसंबर 1996 के बाद किए गए जुडपी जंगल भूमि के आवंटन के संबंध में प्रस्ताव के लिए, महाराष्ट्र राज्य प्रस्ताव में कारण बताएगा कि ऐसे आवंटन क्यों किए गए, साथ ही उन अधिकारियों की सूची भी देगा जिन्होंने इस न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करते हुए ऐसे आवंटन किए। हम स्पष्ट करते हैं कि ऐसे आवंटनों के लिए प्रस्ताव पर कार्रवाई केंद्र सरकार द्वारा तभी की जाएगी जब यह सुनिश्चित हो जाएगा कि संबंधित अधिकारियों के खिलाफ वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 की धारा 3ए और 3बी के तहत दंडात्मक कार्रवाई की गई है;
  • हम निर्देश देते हैं कि महाराष्ट्र राज्य सभी गैर-आवंटित “खंडित भूमि पार्सल” (प्रत्येक का क्षेत्रफल तीन हेक्टेयर से कम है और किसी भी वन क्षेत्र से सटा हुआ नहीं है) को भारतीय वन अधिनियम, 1927 की धारा 29 के तहत “संरक्षित वन” घोषित करेगा;
  • हम महाराष्ट्र राज्य को सभी संबंधित उप-विभागीय मजिस्ट्रेटों (एसडीएम) को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी करने का निर्देश देते हैं कि इस तरह के किसी भी भूखंड पर आगे से अतिक्रमण न हो। यह भी निर्देश दिया जाता है कि यदि इस निर्णय की तिथि के बाद ऐसा कोई अतिक्रमण होता है, तो संबंधित एसडीएम को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा;
  • हम स्पष्ट करते हैं कि जब भी राज्य सरकार को गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए इन भूमियों की आवश्यकता होगी, तो वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के प्रावधानों के अनुसार प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाएगा। हम यह भी स्पष्ट करते हैं कि किसी भी मामले में ऐसी कोई भी भूमि किसी भी उद्देश्य के लिए किसी भी गैर-सरकारी संस्था को नहीं दी जाएगी;
  • हम आगे निर्देश देते हैं कि उप-विभागीय मजिस्ट्रेट, पुलिस उपाधीक्षक, सहायक वन संरक्षक और भूमि अभिलेखों के एक तालुका राजस्व निरीक्षक से मिलकर एक विशेष कार्य बल प्रत्येक जिले में इस निर्णय की तिथि से दो वर्ष की अवधि के भीतर अतिक्रमण हटाने के लिए गठित किया जाना चाहिए। हम स्पष्ट करते हैं कि इन अधिकारियों को केवल इसी उद्देश्य के लिए तैनात किया जाएगा और उन्हें कोई अन्य कर्तव्य नहीं सौंपा जाएगा। हम आगे स्पष्ट करते हैं कि 25 अक्टूबर 1980 के बाद वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए सभी आवंटनों को अतिक्रमण के बराबर माना जाना चाहिए;
  • हम आगे निर्देश देते हैं कि महाराष्ट्र राज्य का राजस्व विभाग 7,76,767.622 हेक्टेयर के उक्त क्षेत्र से शेष क्षेत्र, यदि कोई हो, का कब्जा वन विभाग को सौंप देगा, जो अभी भी राजस्व विभाग के कब्जे में है। यह इस निर्णय की तिथि से एक वर्ष की अवधि के भीतर किया जाना चाहिए। हम स्पष्ट करते हैं कि उक्त भूमि का उपयोग केवल प्रतिपूरक वनरोपण के उद्देश्य से किया जाएगा;
  • हम सीईसी को वन भूमि के उपरोक्त हस्तांतरण की प्रगति की निगरानी करने का निर्देश देते हैं। हम आगे निर्देश देते हैं कि वनरोपण के प्रयोजनों के लिए गैर-वन भूमि की अनुपलब्धता के संबंध में मुख्य सचिव का प्रमाण पत्र होने तक जुडपी भूमि को प्रतिपूरक वनरोपण के लिए उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। हालांकि, ऐसे मामलों में, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के मौजूदा दिशा-निर्देशों के अनुसार, जुडपी जंगल भूमि के दोगुने क्षेत्र पर प्रतिपूरक वनरोपण किया जाना चाहिए;
  • जैसा कि हाल ही में महाराष्ट्र वन भूमि में बहुमंजिला इमारतों के निर्माण के मामले में दिनांक 15 मई 2025 को दिए गए निर्देश में पहले ही कहा जा चुका है, हम सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और सभी केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को यह निर्देश दोहराते हैं कि वे विशेष जांच दल गठित करें ताकि यह जांच की जा सके कि राजस्व विभाग के कब्जे वाली कोई वन भूमि वानिकी उद्देश्य के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए किसी निजी व्यक्ति/संस्था को आवंटित की गई है या नहीं; 
  • हम राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह निर्देश दोहराते हैं कि वे ऐसी भूमि पर कब्जा करने वाले व्यक्तियों/संस्थाओं से भूमि का कब्जा लेने के लिए कदम उठाएं और उसे वन विभाग को सौंप दें। यदि यह पाया जाता है कि भूमि का कब्ज़ा वापस लेना व्यापक जनहित में नहीं होगा, तो राज्य सरकारों/संघ राज्य क्षेत्रों को उक्त भूमि की कीमत उस पर काबिज व्यक्तियों/संस्थाओं से वसूल करनी चाहिए तथा उक्त राशि का उपयोग वनों के विकास के लिए करना चाहिए।