आरएसएस में कोई ऊंच-नीच नहीं है, कोई छुआछूत नहीं, संघ कार्यक्रम में बोले पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद

नागपुर: पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विजयादशमी उत्सव में मुख्य अतिथि थे। संघ के शताब्दी वर्ष के अवसर पर मंच पर उनका आगमन केवल औपचारिकता नहीं था, बल्कि एक बड़ा सामाजिक और राजनीतिक संदेश भी था। नागपुर पहुँचने के बाद, उन्होंने सबसे पहले दीक्षा भूमि का दौरा किया और डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित की। यह वह ऐतिहासिक स्थान है जहाँ डॉ. आंबेडकर ने 1956 में बौद्ध धर्म अपनाया था। कोविंद ने इसी स्थान पर पूजा-अर्चना की और बाद में आरएसएस के एक कार्यक्रम में शामिल हुए। अपने भाषण में उन्होंने आंबेडकर, हेडगेवार, संत तुकाराम, संत रविदास, बिरसा मुंडा जैसे समाज सुधारकों और दलित महापुरुषों का ज़िक्र किया और एकता का संदेश दिया।
रामनाथ कोविंद ने मंच से सबसे ज़्यादा ज़ोर जातिवाद और छुआछूत से मुक्त संघ के मुद्दे पर दिया। पिछले कुछ वर्षों में विपक्ष लगातार संघ और भाजपा पर 'दलित विरोधी' होने का आरोप लगाता रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा है, खासकर 2019 के लोकसभा चुनावों में। ऐसे में पूर्व राष्ट्रपति और देश के सबसे बड़े दलित नेताओं में से एक रामनाथ कोविंद की मौजूदगी को एक तरह की प्रतिक्रिया के तौर पर देखा जा रहा है। अपने भाषण में उन्होंने दृढ़ता से कहा कि आरएसएस ने कभी जातिवाद को बढ़ावा नहीं दिया, बल्कि समाज के सभी वर्गों को एक साथ लाने का काम किया है। उन्होंने कहा कि आरएसएस में कोई ऊंच-नीच नहीं है, कोई छुआछूत नहीं है। यहाँ सभी समान हैं। उन्होंने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को एक दूरदर्शी समाज विज्ञानी बताया और उनकी विशेष प्रशंसा की।
कोविंद ने अपने भाषण में डॉ. आंबेडकर के विचारों पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि संविधान ने एक आम आदमी को राष्ट्रपति पद तक पहुँचने में सक्षम बनाया है। उन्होंने लोगों को आंबेडकर का यह संदेश भी दोहराया कि हम पहले भारतीय हैं, फिर कुछ और। उन्होंने संत तुकाराम, संत रैदास, महात्मा फुले, भगवान बिरसा मुंडा जैसी महान हस्तियों का ज़िक्र किया और बताया कि कैसे संघ समाज के विभिन्न वर्गों को एक साथ लाता है। एकता पर ज़ोर देते हुए उन्होंने कहा कि जहाँ एकता होती है, वहाँ पहचान होती है और जहाँ विभाजन होता है, वहाँ पतन होता है। उन्होंने कहा कि डॉ. हेडगेवार और बाबासाहेब के विचारों में आश्चर्यजनक समानता है।
दलित संगम रैली का ज़िक्र
राजनीतिक दृष्टि से कोविंद का यह दौरा भाजपा के लिए बेहद अहम माना जा रहा है। क्योंकि पिछले कुछ समय से दलित समुदाय में भाजपा की छवि सुधारने की कोशिशें की जा रही हैं। संघ पर समय-समय पर दलित समुदाय की उपेक्षा का आरोप लगता रहा है, लेकिन कोविंद के भाषण ने उन सभी आरोपों का सीधा जवाब दिया। उन्होंने 2001 में लाल किले पर हुई अटल बिहारी वाजपेयी की दलित संगम रैली का ज़िक्र किया और कहा कि हमारी सरकार मनुस्मृति से नहीं, बल्कि भीमस्मृति यानी संविधान से चलती है। आज के राजनीतिक समीकरण में यह संदेश समाज तक पहुँचाना भाजपा और संघ के लिए बेहद अहम होगा।
दलित समुदाय का विश्वास पुनः प्राप्त करना है उद्देश्य
रामनाथ कोविंद का भाषण केवल औपचारिक नहीं था, बल्कि सामाजिक समरसता और राजनीतिक भविष्य का संदेश था। दलितों, पिछड़े वर्गों और हाशिए पर पड़े समूहों को सीधे संबोधित करते हुए उन्होंने संघ की समावेशिता की सराहना की। उन्होंने दृढ़ता से कहा कि संघ ने हमेशा सामाजिक सुधार के लिए काम किया है और आगे भी करता रहेगा। इसलिए, इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य स्पष्ट रूप से संघ के बारे में समाज में व्याप्त भ्रांतियों को दूर करने के साथ-साथ दलित समुदाय का विश्वास पुनः प्राप्त करना था। शताब्दी समारोह में पूर्व राष्ट्रपति की उपस्थिति न केवल ऐतिहासिक मानी जा रही है, बल्कि आगामी चुनावों के मद्देनजर भाजपा-आरएसएस के लिए एक बेहद रणनीतिक कदम भी है।

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