मूंग और उड़द से किसानों का हो रहा मोहभंग, एक दशक में 75 प्रतिशत रकबा हुआ कम

अकोला: जुलाई और अगस्त में हुई मूसलाधार बारिश के कारण फसल को भारी नुकसान हुआ है। इसके अलावा कई प्राकृतिक आपदाओं के कारण किसानों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यही कारण है कि, किसानों का अब मूंग, अरहर और उड़द जैसे दाल की फसलों के प्रति मोहभंग होता जा रहा है। पिछले एक दशक में इन फसलों के रकबे में 75 प्रतिशत की कमी आई है। बारिश और कीड़ो के कारण किसानों को लगता निकालने की मुश्किल हो रही है। जिसके कारण किसान इन फसलों से दूर होते जा रहे हैं।
पिछले एक दशक से मूंग, उड़द की फसल प्राकृतिक आपदाओं से बुरी तरह प्रभावित हुई है। हालांकि, ये फसलें दालें होने के साथ-साथ कम अवधि में भी आती हैं और ये पारंपरिक फसलों के अंतर्गत आती हैं। इसलिए किसानों ने इन फसलों की खेती शुरू कर दी थी। लेकिन, चूंकि इन फसलों की उत्पादन लागत कम नहीं हो रही है, इसलिए इन फसलों के क्षेत्र में बड़ी कमी आई है। जिले में मूंग, उडीदा के औसत क्षेत्रफल का 75 प्रतिशत घट गया है। ऐसे में इन फसलों के रखरखाव के लिए संघर्ष कर रहे किसान प्राकृतिक आपदाओं की चपेट में आ रहे हैं।
जितना लगाया उतना ही निकल जाए
इस साल जिन किसानों ने मूंग, उड़द की बुवाई की है, उन्हें चिंता है कि फसल उत्पादन पर हुए खर्च की वसूली होगी भी या नहीं। किसान लगातार फसलों को कीड़ो से बचाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन बारिश के कारण उन्हें बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। पिछले सीजन में उपज साढ़े तीन क्विंटल प्रति एकड़ तक थी। इस बार किसानों को लगता है जितना लगाया है उतना भी निकल जाए वही बहुत है।
कितना उत्पाद होगा पता नहीं
किसानों का कहना है कि, इस बार 28 जून को बुवाई के बाद 4 जुलाई से लगातार बारिश हुई, जिसके कारण फसलों पर छिड़काव के लिए भी समय और उचित वातावरण नहीं मिल पाया है। अधिक बारिश के कारण फसल नहीं हुई है। इन कमजोर पेड़ों को कितनी फली की जरूरत होगी और उन्हें कितनी उपज मिलेगी, इसके बीच कोई संबंध नहीं है।
- 10 साल में घटना रकबा

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