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Amravati

पश्चिम विदर्भ में सात महीनों में 598 किसानों ने की आत्महत्या, लगातार फसल बर्बादी और कर्ज से तंग आकर दे दी जान


अमरावती: पश्चिमी विदर्भ में किसानों की आत्महत्या का दौर जारी है। जनवरी से जुलाई तक के सात महीनों में पश्चिमी विदर्भ के पाँच जिलों - यवतमाल, अकोला, वाशिम, बुलढाणा और अमरावती में 598 किसानों ने आत्महत्या की है। लगातार फसल बर्बादी, कृषि उपज के लिए कोई गारंटीशुदा मूल्य न मिलने, कर्ज़ के बोझ और शोषण से तंग आकर पिछले सात महीनों में पश्चिमी विदर्भ के सभी पाँच जिलों में 598 किसानों ने आत्महत्या कर ली है। चौंकाने वाली जानकारी यह है कि यवतमाल ज़िले में सबसे ज़्यादा 196 किसानों ने आत्महत्या की है।

विदर्भ के पश्चिमी हिस्से से एक बार फिर से दर्दनाक खबर सामने आई है। बीते सात महीनों में कुल 598 किसानों ने आत्महत्या की है। लगातार फसलें खराब होने, मौसम की बेरुखी और कर्ज के बढ़ते बोझ ने किसानों को इस हद तक तोड़ दिया कि उन्होंने मौत को गले लगाना ही आखिरी रास्ता समझा।

इस साल जनवरी से जुलाई 2025 के बीच सबसे ज्यादा आत्महत्याएं यवतमाल, अमरावती, अकोला, वाशिम और बुलढाणा जिलों से दर्ज की गई हैं। इनमें से अधिकांश किसान छोटे और सीमांत कृषक थे, जो बैंकों और साहूकारों से लिए गए कर्ज के कारण मानसिक तनाव में थे।

गहराता जा रहा कृषि संकट

विदर्भ में कपास और सोयाबीन प्रमुख फसलें हैं, लेकिन समय पर बारिश न होने और कीट प्रकोप के कारण फसलें लगातार बर्बाद हो रही हैं। वहीं सरकार की बीमा योजनाएं और कर्जमाफी की घोषणाएं किसानों तक सही तरीके से नहीं पहुंच पा रही हैं।

परिवारों की हालत बदतर

आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवार अब न सिर्फ आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, बल्कि मानसिक और सामाजिक दबाव में भी हैं। कई परिवारों के पास रोज़मर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए भी साधन नहीं बचे हैं।

ठोस कदम की ज़रूरत

किसान संगठनों ने सरकार से तुरंत हस्तक्षेप की मांग की है। वे चाहते हैं कि प्रभावित किसानों के लिए विशेष राहत पैकेज, सिंचाई की बेहतर सुविधा, पारदर्शी बीमा योजना और कर्ज माफी जैसे कदम तत्काल उठाए जाएं। अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह संकट और भी गंभीर रूप ले सकता है।