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Nagpur

गणेश उत्सव को प्रदुषण मुक्त कराने अनोखा उपक्रम, मिटटी के बदले पीतल की मूर्ति की स्थापना


नागपुर: शनिवार से राज्य में गणेशोत्सव की शुरुवात हो रही है. बीते कुछ वर्षो से पर्यावरण पूरक गणेश उत्सव मनाये जाने पर जोर दिया जा रहा है। नागपुर में नागपुर महानगर पालिका प्रयासरत है की इस पर पूरी तरह के प्रकृति को ध्यान में रखकर इस उत्सव को मनाया जाये लेकिन नागपुर में ही एक ऐसा सार्वजनिक उत्सव मंडल है जो बीते 10 वर्षो से न केवल पर्यावरण पूरक गणेश उत्सव मना रहा है बल्कि अन्य मंडलों को भी प्रोत्साहित कर रहा है. ये मंडल मिट्टी की बड़ी मूर्ति विराजने के बजाये पीतल की 6 फिट ऊँची मूर्ति की स्थापना करता है. यह क्रम वर्ष 2013 से सतत शुरू है.

7 सितंबर को श्री का आगमन हो रहा है. महाराष्ट्र में 10 दिनों तक चलने वाला गणेशोत्सव प्रमुख उत्सव है. उत्साह और उमंग के साथ ये उत्सव राज्य भर में मनाया जाता है. बीते कुछ वर्षो से पर्यावरण पूरक गणेश उत्सव मनाये जाने पर जोर दिया रहा है. बीते कुछ वर्षो में हुई जनजागृति का असर दिखाई भी दे रहा है लेकिन जिस पैमाने पर ये उत्सव मनाया जाता है उस स्तर पर होने वाले प्रयास अब भी नाकाफ़ी जैसे है लेकिन कई ऐसे लोग है जो अपने प्रयासों में जुटे हुए है नागपुर का रानी लक्ष्मीबाई गणेश उत्सव मंडल बीते कई वर्षो से मिट्टी की गणेश मूर्ति स्थापित किये जाने के बजाये पीतल की भव्य और आकर्षक मूर्ति पंडाल में विराजित कर रहा है. इस तरह की शुरुवात किये जाने के पीछे का कारण मंडल के कार्यकर्त्ता पर्यावरण की चिंता को मानते है.

गणेशोत्सव भक्ति-भाव के साथ आनंद तो दे जाता है. लेकिन कई ऐसे गंभीर प्रश्न भी है जिनके लिए सोचने पर मजबूर कर देता है. नागपुर जैसे शहर में कोई नदी नहीं है जिसमे मूर्तियों के विसर्जन की एक चिंता है. पहले तालाबों में विसर्जन होता था लेकिन अब बीते कुछ वर्षो से कृत्रिम तालाबों में विसर्जन हो रहा है. पीओपी की मूर्तियाँ भक्तो की आस्था को अब भी आहत कर रही है लेकिन बीते कुछ वक्त में इन प्रतिबंधित मूर्तियों को लेकर उठाये गए क़ानूनी कदमों और जनजागृति का असर दिखाई देने लगा है लेकिन जरुरत प्रकृति की चिंता को लेकर स्थाई समाधान के कारगर होने को लेकर है.  रानी लक्ष्मीबाई गणेश उत्सव मंडल का प्रयास इस दिशा में अच्छी पहल माना जाता है.  ऐसे दौर में जब उत्सव स्पर्धा का विषय भी बन गए है. मंडल के पदाधिकारी मूर्ति के खर्चे को कम करके उसका इस्तेमाल सामाजिक जिम्मेदारियां निभाने में कर रहे है.

गणेशोत्सव की शुरुवात लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने क्यों और किन परिस्थितियों में इसकी जानकारी सभी को पाठ्यपुस्तकों के माध्यम से मिल चुकी है. बस तिलक के दौर से लेकर अब के दौर के बिच के सामाजिक और आर्थिक बदलाव का दृश्य ही इस उत्सव को लेकर बदला है. संयोग है की नागपुर के एक पंडाल में बैठने वाली पीतल के ये भव्य और आकर्षक मूर्ति नागपुर के रहाटे कॉलनी में उसी घर में रखी हुई है जहां कभी अपने नागपुर प्रवास के दौरान तिलक रुका करते थे.रानी लक्ष्मीबाई गणेश उत्सव मंडल ने एक बार पीतल की मूर्ति को खरीद कर हर साल होने वाली मिट्टी की मूर्ति के खर्चे को बचा लिया।

मंडल न केवल मूर्ति के विसर्जन को लेकर समाधान खोजा है बल्कि अपने पंडाल के निर्माल्य को लेकर भी व्यवस्था की है,पंडाल परिसर में ही निर्माल्य से खाद बनाये जाने का काम किया जाता है. इस मंडल की ही तरह नागपुर में भी अब कई लोग निकल कर सामने आये है जो समाधान के साथ उत्सव को मानाने की पहल कर रहे है. रोकड़े ज्वेलर्स के पारस रोकड़े ने बताया की बीते कुछ वर्षो में नागपुर में गणेशोत्सव से पहले चाँदी और अन्य धातुओं की मूर्तियों की बिक्री में आयी जो इस बात का संकेत है की लोग 10 दिनों तक धातु की बनी मूर्ति की पूजा करने में आस्था दिखा रहे है.

हमारे उत्सव उमंग भरने के ही साथ समाधान खोजने के लिए प्रेरित करते है. कुछ यही काम नागपुर में भी होता हुआ दिखाई दे रहा है. उत्सव के बाद आस्था के होने वाले अनादर से अनभिज्ञ होकर सिर्फ उत्साह से उसे भूल जाना सही नहीं जरुरी है की बदलाव अपनाये जाये,जो प्रकृति के लिए भी पूरक साबित हो।