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Nagpur

DMER की लापरवाही से छात्रो का नुकसान, MBBS के बाद पीजी की सीट भी हुई कम


-दिव्येश द्विवेदी 

नागपुर: राज्य के 8 मेडिकल कॉलेजों की 900 एमबीबीएस सीटों में पहली पसंद के प्रवेश आवेदन से मेडिकल के छात्र वंचित रह गए है। डायरेक्टर ऑफ़ मेडिकल एज्युकेशन एंड मेडिकल रिसर्च द्वारा समय पर इस विषय पर ध्यान नहीं दिए जाने के कारण यह स्थिति पैदा हुई है। यह स्थिति सिर्फ एमबीबीएस में एडमिशन के लिए नहीं है बल्कि पीजी हो चुके डॉक्टरों को सर्विस बांड को पूरा करने के लिए निकाली गयी जगहें भी कम हुई है जिसे लेकर निवासी डॉक्टरों की संस्था मार्ड ने डीएमईआर के कामकाज पर नाराजगी व्यक्त की है। अस्पतालों में मूलभूत सुविधाओं की निगरानी और मानकों को पूरा करने की जिम्मेदारी डीएमईआर के पास है।

अपने पसंदीदा मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेने की आस लगाए बैठे कई छात्रों को डायरेक्टर ऑफ़ मेडिकल एज्युकेशन एंड मेडिकल रिसर्च के कारण झटका लगा है। राज्य के मेडिकल कॉलेजों के संचालन की निगरानी और मानकों की जांच किये जाने की जिम्मेदारी डीएमईआर की है लेकिन समय पर ध्यान न दिए जाने के कारण करीब 900 एमबीबीएस की सीटों पर और डेंटल कॉलेज की 100 सीटों पर छात्र पहली पसंद का विकल्प भरने से वंचित रह गए। सामने खड़ी हुई इस स्थिति को लेकर मेडिकल के छात्रों ने नाराजगी व्यक्त की है।।

मेडिकल की पढाई करने वाले छात्रों के मुताबिक वह एडमिशन के लिए काफी मेहनत करते है और उनकी आशा रहती है वह अपने पसंदीदा कॉलेज में एडमिशन ले। मेडिकल एडमिशन को लेकर कई तरह की संस्थाये सीधे तौर से जुडी हुई है। असोसिएशन ऑफ़ स्टेट मेडिकल इंटर्न के महासचिव डॉ गौरव सुरेखा ने कहा, "डॉक्टर बनने की इच्छा करने वाला छात्र अकेला नहीं होता है। उसके पीछे उसका परिवार भी होता है। बचाई कई सालों तक मेहनत करता है फिर परीक्षा देता है। अच्छे मार्क्स लेने के बाद अच्छे कॉलेज में दाखिला लेने के लिए काउंसलिंग पर निर्भर होता है। लेकिन अगर संस्थाओं के बीच इस तरह की दुविधा होगी तो छात्रों के मन में जो स्थिति उत्पन्न होगी उससे कटऑफ बढ़ेगा, जिससे कई छात्रों का सपना अधूरा रह सकता है। 

केंद्र सरकार ने अब एडमिशन की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए कई व्यापक बदलाव किये है। नेशनल मेडिकल कमीशन अपने तौर पर निगरानी करता है। एमएमसी ने सम्बंधित मेडिकल कॉलेजों में खामियां बताई थी। जिन्हे सुधार करने की जिम्मेदारी डीएमईआर की थी। जो नहीं हुई। 

एनएमसी की निगरानी पर निर्णय लेते हुए महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ़ हेल्थ साइंस ने महात्मा गांधी चिकित्सा संस्थान विज्ञान सेवाग्राम-वर्धा,टेरना मेडिकल कॉलेज, नवी मुंबई,अन्नासाहेब चूड़ामन पाटिल स्मारक मेडिकल कॉलेज- धुले, डॉ पंजाबराव देशमुख मेडिकल कॉलेज- अमरावती, डॉ. एन वाई तसगांवकर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस- कर्जत, सिंधुदुर्ग शिक्षण प्रसारक मंडल मेडिकल कॉलेज, कुडाल, सिंधुदुर्ग, वेदांत मेडिकल कॉलेज, पालघर, टेरना डेंटल कॉलेज, नवी मुंबई की संलग्नता को रद्द कर दिया। 

एडमिशन की प्रक्रिया महाराष्ट्र कॉमन एंट्रेंस सेल के माध्यम से होती है। छात्र जब यहाँ एप्लिकेशन करने पहुंचे तो यह सारे कॉलेज और इनकी सीट यहाँ से नदारद थी। कॉलेज के नाम के साथ वेबसाइट पर उपलब्ध सीटें दर्शाने की पुरानी परंपरा रही है। लेकिन राउंड 1 के दौरान, राज्य सीईटी सेल द्वारा 4 अगस्त को सीट आवंटन जारी किया गया था, जहां छात्रों को कुछ कॉलेजों के नाम नहीं मिले। 

जब उन्होंने पूछताछ की तो पता चला कि चूंकि कॉलेज मानक पूरे नहीं कर पाए, इसलिए उन्हें सूची में शामिल नहीं किया गया। डीएमईआर की यह चूक सिर्फ एमबीबीएस की एडमिशन के नहीं हुई है। बल्कि एमडी किये जाने के बाद सर्विस बांड के लिए निकाली जाने वाली सीट के आवंटन को लेकर भी यही दिक्कत हुई। जितने छात्र एमडी की परीक्षा पास हुए उससे कम संख्या में वैकेंसी निकाली गयी।

डीएमईआर द्वारा जिस तरह से निर्णय लिए जा रहे है उससे मेडिकल के छात्रों के बीच कन्फूजन बढ़ रहा है। और उनका नुकसान हो रहा है। ऐसे में जरुरी है की सरकार इन सारे विषयों पर हस्तक्षेप करें और स्थित को सुधारे। डीएमईआर के संचालक पद  में डॉ अजय चन्दनवालें की नियुक्ति हुई है। ऐसा दिखाई दे रहा है की वो परिस्थितियों को संभालने में असहाय दिखाई दे रहे है।

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