माओवादी लिंक मामला: Sai Baba सहित पांच दोष मुक्त, बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने सुनाया फैसला

नागपुर: प्रतिबंधित नक्सलवादी संगठन सीपीआईएम (CPIM) से संबंध को लेकर जेल की सजा काट रहे दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi Univarsity) के पूर्व प्रोफ़ेसर साई बाबा (Former Profesar Sai Baba) को अदालत से बड़ी राहत मिली है। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच (Bombay Highcourt Nagpur Bench) ने बाबा को बरी कर दिया है। जस्टिस रोहित देव और जस्टिस अनिल पानसरे की खंडपीठ ने शुक्रवार को यह आदेश दिया। इसी के साथ पांच अन्य को भी दोष मुक्त करते हुए रिहा करने का आदेश दिया है।
ज्ञात हो कि, 2014 में माओवादी संगठन से लिंक को लेकर साई बाबा सहित पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया था। इसमें एक पत्रकार और एक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का छात्र भी शामिल था। 2017 में गडचिरोली की जिला अदालत ने सभी को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) और भारतीय दंड संहिता (IPC) के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। सभी आरोपी नागपुर के सेंट्रल जेल में बंद हैं।
आदेश के खिलाफ दायर की याचिका
जिला अदालत के निर्णय के विरोध में बाबा सहित सभी आरोपियों ने याचिका लगाई थी। जिसमें सभी ने अपने ऊपर लगे आरोपों को निराधार बताते हुए बरी करने की मांग की थी। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने शुक्रवार को यह फैसला सुनाया। हालांकि, पांच आरोपियों में से एक की मौत हो चुकी है।
इन्हें भी किया गया बरी
साई बाबा के साथ अदालत ने महेश टीकाराम तिर्की (22), पाण्डु पोरे नरोते(27), हेम वेशवदत्त मिश्रा(32), प्रशांत सांगलिकर(54), विजय नन तिर्की (30) को भी अदालत ने दोष मुक्त कर दिया है। महेश और पाण्डु जहां गडचिरोली के निवासी है। वहीं मिश्रा और सांगिलकर उत्तराखंड के अल्मोड़ा और देहरादून के रहवासी है। इस के साथ विजय छत्तीसगढ़ के कांकेर का निवासी है। इन सभी को गडचिरोली की अदालत ने देश के खिलाफ जंग छेड़ने का दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
साईबाबा 90 प्रतिशत दिव्यांग
साईबाबा शारीरिक रूप से दिव्यांग है। उनका शरीर का 90 प्रतिशत हिस्सा काम नहीं करता है। वह विल चेयर पर ही रहते हैं। जब साई बाबा को गिरफ्तार किया गया था उस समय वह दिल्ली यूनिवर्सिटी में बतौर प्रोफ़ेसर काम कर रहे थे। 2017 में आजीवन कारावास की सजा पाने के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने नौकरी से निकाल दिया था। प्रोफेसर जीएन साईबाबा बतौर सामाजिक कार्यकर्ता, रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट नाम की भी एक संस्था से जुड़े हुए हैं. वे 'रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट' के उपसचिव भी रह चुके है 'रेवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट' पिछले कई महीनों से नक्सलवादियों से संबंधों के लिए खुफिया एजेंसियों के निशाने पर था।

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