जिला परिषद में पेंशन घोटाला: महिला लिपिक पचा रही रही मृत शिक्षकों की पेंशन

नागपुर. जिला परिषद शिक्षा विभाग में पेंशन घोटाला सामने आया है। जहां एक महिला लिपिक कई सालों से मृत शिक्षकों के वारिस दारो की जगह उनके वारिसदारों के नाम अपने स्वयं के, अपने मृत पति, पारिवारिक सदस्यों, रिश्तेदारों, करीबी मित्रों आदि के बैंक खातों से संलग्न कर पेंशन गबन कर रही थी। जब वह छुट्टी पर गई तो यह घोटाला सामने आया। आरोपी लिपिक पारशिवनी पंचायत समिति के अंतर्गत कार्यरत थी। इस घटना के सामने आते ही जिला परिषद् में हड़कंप मच गया है। सीईओ योगेश कुंभेजकर ने उसे तत्काल निलंबित कर जांच के लिए 3 अधिकारियों की समिति गठित की है।
ऐसे हुआ खुलासा
नेवारे नमक महिला लिपिक अनेक महीनों से अवकाश पर चल रही थी, उसके टेबल का काम दूसरे कर्मचारी को सौंपा गया। तब उसके द्वारा किए गए घोटाले उजागर हुए। पंचायत समिति स्तर पर गट-शिक्षाधिकारी ने जांच कर प्राथमिक रिपोर्ट सीईओ को सौंपी। इसे जिला परिषद का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला बताया जा रहा है।
2013 से कर रही थी गबन
घटना के सामने आने के बाद जिला परिषद ने जांच शुरू कर दी है। सीईओ ने वित्त व लेखा अधिकारी की अध्यक्षता में शालेय पोषण आहार विभाग के वित्त अधिकारी और सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारी की टीम जांच के लिए गठित की है। शुक्रवार को अधिकारी जांच करने के लिए पारशिवनी भी पहुंच गए। मिली जानकारी के अनुसार, वह वर्ष 2013 से एक ही जगह पर एक ही टेबल पर नियुक्त बताई जा रही है और वर्षों से मृत पेंशनधारकों का खाता बंद न करते हुए उनकी पेंशन की राशि डकार रही है। इस तरह करोड़ों रुपये उसके द्वारा हड़पे जाने की चर्चा है।
हर महीने 5 लाख की हेराफेरी
इस महिला लिपिक के पास पारशिवनी पंस अंतर्गत लगभग 190 से अधिक पेंशनरों का काम था. जिस पेंशनर का निधन हो जाता, उसकी पेंशन बंद न करते हुए वह पेंशन राशि अपने रिश्तेदारों के बैंक खाते से जोड़कर हेराफेरी कर रही थी। मीडिया में चल रही खबर के अनुसार प्राथमिक रिपोर्ट में सामने आया है कि वह हर महीने 5 लाख रुपये पचा रही थी। मार्च 2022 में जब पेंशनरों के ‘लाइफ सर्टिफिकेट’ की जांच की गई तो लगभग 30 के नहीं आए थे। पंस अधिकारी ने उनसे जिंदा होने का प्रमाणपत्र मंगवाया लेकिन फिर भी करीब 20 के नहीं आए। 2-4 महीने इंतजार किया गया और फिर अधिकारी ने उनके पेंशन से जुड़े बैंक अकाउन्ट्स की बैंकों में जाकर जांच की। वहां जिन व्यक्तियों के मोबाइल नंबर, पता मिले उनसे संपर्क किया गया तो उनके दूसरे ही व्यक्ति होने का पता चला।

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