Chandrapur: संघटन में वर्चस्व के लिए सुधीर मुनगंटीवार और किशोर जोरगेवार गुट में टकराव

- पवन झबाडे
चंद्रपुर: बीजेपी में पूर्व मंत्री व बल्लारपुर के विधायक सुधीर मुनगंटीवार और चंद्रपुर के विधायक किशोर जोरगेवार के बीच लंबे समय से चल रहा मतभेद अब एक नए मोड़ पर आ चुका है। दोनों नेताओं के बीच चल रही वर्चस्व की लड़ाई अब संगठन पर वर्चस्व पाने तक पहुंच गया है। इसी वजह से प्रदेश अध्यक्ष के निर्देश के बावजूद निर्धारित समय में शहर की नई कार्यकारिणी गठित नहीं हो सकी।महानगर अध्यक्ष पद को लेकर दोनों गुटों में जोरदार खींचतान चल रही है। किसे अध्यक्ष बनाया जाएगा, इसको लेकर कार्यकर्ताओं में असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
माना जा रहा है कि जिस गुट का प्रत्याशी अध्यक्ष बनेगा, कार्यकारिणी भी उसी गुट के अनुसार तय की जाएगी। मुनगंटीवार समर्थकों में राहुल पावडे, विशाल निबांळकर, सूरज पेद्दुलवार और प्रज्जल कडू के नाम चर्चा में हैं, वहीं जोरगेवार गुट की ओर से दशरथसिंग ठाकूर, सुभाष कासनगोट्टूवार और अमोल शेंडे के नाम सामने आ रहे हैं।विधानसभा चुनाव से ही मुनगंटीवार और जोरगेवार के बीच रिश्ते तनावपूर्ण बने हुए हैं। 2014 में जोरगेवार ने बीजेपी छोड़ दी थी, लेकिन 2024 में उनकी 'घरवापसी' हुई। हालांकि कुछ बीजेपी नेताओं ने उनके वापसी का विरोध किया था और उनके जीतने के बाद भी स्थिति में विशेष बदलाव नहीं आया।
चंद्रपुर के विधायक होने के बावजूद जोरगेवार से पार्टी के कई पदाधिकारी दूरी बनाए हुए हैं। जिले में हमेशा से मुनगंटीवार गुट का ही प्रभाव रहा है। वहीं पूर्व सांसद हंसराज अहीर ने हमेशा इस संघर्ष से दूरी बनाए रखी। अब जब चंद्रपुर महानगर पालिका चुनाव नजदीक हैं। महानगर अध्यक्ष का पद और भी महत्वपूर्ण हो गया है। पहले नगर पालिका के उम्मीदवार भी मुनगंटीवार ही तय करते थे, लेकिन मंत्री पद न मिलने के बाद पार्टी में उनके विरोधी सिर उठाने लगे हैं। हालांकि वे बल्लारपुर से विधायक हैं, लेकिन उनका प्रभाव चंद्रपुर में भी गहरा है और अधिकांश कार्यकारिणी उनके पक्ष में नजर आती है।प्रदेश अध्यक्ष ने 20 मार्च को शहर के मंडल अध्यक्षों और कार्यकारिणी की घोषणा के लिए पत्र जारी किया था।
10 अप्रैल तक मंडल अध्यक्ष और 20 अप्रैल तक महानगर अध्यक्ष व कार्यकारिणी घोषित करने की समयसीमा तय की गई थी। परंतु इससे पहले बूथ अध्यक्ष और मतदाता सूची प्रमुखों की नियुक्ति जरूरी थी, जो अब तक नहीं हो सकी। अब मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति के लिए पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की गई है, लेकिन उन्होंने भी अभी तक काम शुरू नहीं किया है। इन सभी कारणों से नई कार्यकारिणी की घोषणा में और देरी हो सकती है। कुल मिलाकर, मुनगंटीवार और जोरगेवार के बीच चल रही वर्चस्व की लड़ाई ही चंद्रपुर बीजेपी संगठन की अस्थिरता की मुख्य वजह बन चुकी है।

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