सुनील केदार को मिलेगी राहत या लगेगा झटका! सजा पर रोक लगाने वाली याचिका पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

नागपुर: कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मंत्री सुनील केदार (Sunil Kedar) विधानसभा चुनाव (Assembly Election) लड़ने और सजा पर रोक लगाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ (Bombay Highcourt Nagpur Divison) ने केदार की सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। जिसको देखते हुए केदार ने अब सजा पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से अपील की है। उनकी याचिका पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी।
केदार को नागपुर जिला मध्यवर्ती बैंक घोटाला (NDCC) मामले में नागपुर की सत्र अदालत ने पांच साल की सजा सुनाई थी। जन प्रतिनिधित्व कानून के मुताबिक दो साल से ज्यादा की सजा पाने वाला कोई भी चुनाव नहीं लड़ सकता। इस वजह से केदार को सजा पर रोक मिलना जरूरी है. इसके लिए उन्होंने हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी। लेकिन हाई कोर्ट ने उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया। अब केदार का विधानसभा लड़ने का सपना सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर है।
नागपुर जिला केंद्रीय सहकारी बैंक (एनडीसीसी) घोटाला मामले में दोषी ठहराए गए पूर्व मंत्री सुनील केदार ने आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। 22 दिसंबर, 2023 को अदालत ने केदार और छह अन्य को पांच साल के कठोर कारावास और रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। सभी आरोपियों ने जमानत के लिए अर्जी दी थी।
शुरुआत में केदार ने सिर्फ सजा पर रोक और जमानत के लिए सेशन कोर्ट में अर्जी दी थी। इसे सेशन कोर्ट ने खारिज कर दिया था. फिर उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. इसकी सुनवाई न्यायमूर्ति उर्मीला जोशी-फाल्के के समक्ष हुई। केदार का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता सुनील मनोहर ने किया, जबकि उनका समर्थन अधिवक्ता देवेन्द्र चौहान ने किया। कोर्ट ने उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया। लगभग पांच महीने की अवधि के बाद केदार ने सजा पर रोक लगाने के लिए आवेदन किया। हालांकि, सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
पूर्व मंत्री सुनील केदार को पांच साल जेल की सजा सुनाई गई है और उनकी विधायकी रद्द कर दी गई है। नियमों के मुताबिक वे अगले छह साल तक कोई चुनाव नहीं लड़ सकते। यदि उनकी दोषसिद्धि पर रोक लगा दी जाती है, तो उन्हें विधायक के रूप में बहाल किया जाएगा और विधानसभा चुनाव के लिए पात्र बनाया जाएगा। हाई कोर्ट से निराश होकर उनके पास सुप्रीम कोर्ट जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।

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