घोटाले का पर्दाफाश करने वाले अधिकारी की ही जांच शुरू, जिवती तहसील में संजय गांधी निराधार योजना में घोटाले का मामला

चंद्रपुर: जिवती तहसील में संजय गांधी निराधार योजना के लाभार्थियों ने लाभ न मिलने की शिकायतें की थीं। उस समय तहसीलदार के पद पर कार्यरत अधिकारी ने इस गंभीर मामले की जांच की। जांच में सामने आया कि कुछ कर्मचारी अवैध रूप से निराधार लाभार्थियों की राशि को अपने खातों में स्थानांतरित कर रहे थे। तहसीलदार द्वारा इस घोटाले की पूरी जानकारी जिलाधिकारी को दी गई और लाखों रुपये के गबन की रिपोर्ट सौंपी गई। लेकिन हैरानी की बात यह है कि अब प्रशासन ने खुद इस घोटाले का पर्दाफाश करने वाले तहसीलदार के खिलाफ ही विभागीय जांच शुरू कर दी है।
यह घोटाला वर्ष 2017 से चल रहा था, लेकिन इतने वर्षों तक किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी, यह बात भी लोगों को हैरान कर रही है। जुलाई 2023 में अविनाश शेंबटवाड जिवती तहसील में परिवीक्षाधीन तहसीलदार के रूप में नियुक्त हुए। उनके पास संजय गांधी निराधार योजना के लाभार्थियों की कई शिकायतें आईं कि उन्हें योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। इन शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए तहसीलदार शेंबटवाड ने जांच की। जांच में पाया गया कि कुछ कर्मचारियों ने मिलीभगत कर लाखों रुपये का गबन किया है।
तहसीलदार ने सितंबर 2024 में जिलाधिकारी को इस पूरे घोटाले की रिपोर्ट सौंपते हुए दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। इस रिपोर्ट में 2017 से 2024 तक किए गए पूरे घोटाले का विस्तृत विवरण दिया गया था। पिछले सात-आठ वर्षों से यह घोटाला चल रहा था, लेकिन इस दौरान जिवती तहसील में कार्यरत दस से अधिक तहसीलदारों को इसकी जानकारी क्यों नहीं हुई, यह बात भी संदेहास्पद है।
तहसीलदार शेंबटवाड की रिपोर्ट में तत्कालीन कंप्यूटर ऑपरेटर विकास येलनारे, लिपिक तालेवार और पांडुरंग नंदुरकर पर मिलीभगत से गबन करने का आरोप लगाया गया है। वर्ष 2023-24 में कुल 34 लाख 24 हजार 600 रुपये मृत लाभार्थियों के खातों से विकास येलनारे के खाते में अवैध रूप से स्थानांतरित किए गए थे। इसी प्रकार 2017 से 2023 के बीच भी लाखों रुपये का गबन किया गया था।
हालांकि तहसीलदार ने अपनी रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया कि बैंक की ओर से जांच में सहयोग नहीं मिल रहा है। तहसीलदार की रिपोर्ट के बाद जिलाधिकारी ने राजुरा के उपविभागीय अधिकारी की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति गठित की। जांच के दौरान 2023-24 की अवधि में कार्यरत तत्कालीन लिपिक पांडुरंग नंदुरकर ने 34 लाख 24 हजार 600 रुपये की राशि गलत खाते में जाने की बात कहते हुए सरकारी खाते में राशि जमा कर दी। समिति की रिपोर्ट फरवरी 2025 में जिलाधिकारी को सौंपी गई।
हालांकि इस समिति ने 2017 से हुई गड़बड़ियों की जांच नहीं की, जबकि तहसीलदार शेंबटवाड ने अपनी रिपोर्ट में 2017 से गबन की जानकारी दी थी। इतने वर्षों से चल रहे घोटाले की जांच कर शासन को 34 लाख 24 हजार 600 रुपये की वसूली करवाने वाले तहसीलदार पर ही वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा लापरवाही का आरोप लगाकर विभागीय जांच शुरू कर दी गई है। यदि घोटालों को उजागर करने वाले अधिकारियों के खिलाफ ही कार्रवाई की जाएगी, तो भविष्य में कोई भी अधिकारी भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर करने की हिम्मत नहीं करेगा यह बात इस मामले से स्पष्ट होती है।

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