200 रूपए रिश्वत मामले का आरोपी 30 साल बाद बरी,दुःख खुद की ईमानदारी का ठप्पा नहीं देख पाया

नागपुर: महज 200 रूपए की रिश्वत के आरोपी को अदालत ने 30 साल बाद फैसला सुनाते हुए निर्दोष माना है.लेकिन दुःख जिस ग्राम सेवक को लेकर यह फ़ैसला सुनाया गया है वो अब वह खुद पर लगे ईमानदारी के ठप्पे को सुनने के लिए मौजूद नहीं है.वर्ष 1993 में 200 रूपए की रिश्वत लेने के आरोपी तत्कालीन ग्राम सेवक को मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने निर्दोष माना है.इस मामले में ग्राम सेवक के आरोपों से मुक्त होने की अवधि एक दो बरस की नहीं बल्कि 30 साल की रही.आरोपी अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन उसके चले जाने के बाद भी परिवार लगातार न्याय के लिए लड़ता रहा और अब जाकर फैसला आया है.प्रकरण चंद्रपुर जिले के पलसगांव का है.200 रूपए रिश्वत लेने का आरोपी ग्राम सेवक के पद पर कार्यरत था.10 सितम्बर 1993 को मामले का फिरयादी किसी काम से ग्राम पंचायत आया था.आरोपों के मुताबिक किसी दस्तावेज के लिए जब वह ग्राम सेवक के पास पहुंचा तो तो उसने उससे 200 रूपए मांगे।दस्तावेज का शुल्क महज पांच रूपए था इसलिए उसने इस मामले की शिकायत कर दी थी.निचली अदालत ने ग्राम सेवक को दोषी मानते हुए 6 महीने की सजा और 2 हजार रूपए का जुर्माना सुनाया था.इसके खिलाफ ग्राम सेवक ने ऊपरी अदालत में अपील दायर की थी.मामला विचाराधीन रहने के दौरान ही ग्राम सेवक की मौत हो गई.लेकिन उसकी पत्नी और बेटा अदालती लड़ाई लड़ते रहा.लगभग 30 साल की लड़ाई के बाद अदालत से सबूतों के आभाव में ग्राम सेवक को निर्दोष क़रार दिया।

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