क्या UPSC में होगा पाली भाषा का समावेश? कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब
नागपुर: बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में एक जनहित याचिका दायर की गई है जिसमें मांग की गई है कि संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा (यूपीएससी) मुख्य परीक्षा में पाली भाषा को एक वैकल्पिक विषय के रूप में मान्यता दी जाए और एक पाली भाषा विश्वविद्यालय की स्थापना की जाए। इस पर कोर्ट ने केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने का आखिरी मौका दिया है।
यह याचिका प्राध्यापक भालचंद्र खांडेकर ने दायर की है। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति अतुल चंदुरकर और न्यायमूर्ति अभय मंत्री के समक्ष हुई। याचिका के मुताबिक, करीब ढाई हजार साल के इतिहास के साथ पाली देश की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है। गौतम बुद्ध ने मुख्य रूप से इस भाषा का उपयोग आध्यात्मिकता और अपनी विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए किया था। बाद में सम्राट अशोक के शासनकाल में इस भाषा का प्रयोग पूरे देश में किया जाने लगा। आज देश के पचास से अधिक विश्वविद्यालयों में यह भाषा पढ़ाई जाती है, फिर भी यह यूपीएससी मुख्य परीक्षा में चुने जाने वाले विषयों की सूची में शामिल नहीं है।
इतना ही नहीं, इससे पहले 2016 में भी इसे लेकर कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। उस समय कोर्ट ने केंद्र सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को यूपीएससी मुख्य परीक्षा में चयनित होने वाले विषयों की सूची में इस भाषा को शामिल करने पर सकारात्मक रूप से विचार करने का भी आदेश दिया था।
इसे लेकर अक्सर सरकारी स्तर पर बात की जाती थी. लेकिन अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है। इसलिए कोर्ट इस विभाग को संबंधित निर्णय लेने का आदेश दे। साथ ही इस याचिका के जरिए मांग की गई है कि यह फैसला लेने और इसे समयबद्ध तरीके से लागू करने का आदेश दिया जाए।
इसके अलावा यह भी मांग की गई है कि पाली विश्वविद्यालय की स्थापना महाराष्ट्र और अधिमानतः नागपुर में ही की जानी चाहिए। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए चार हफ्ते का वक्त दिया है और साफ कर दिया है कि ये आखिरी मौका है। याचिकाकर्ता के लिए मामले की पैरवी अधिवक्ता शैलेश नारनवरे ने की।
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