नागपुर की सड़कों पर भिखारियों का साम्राज्य, पुलिस, मनपा और प्रशासन की तमाम योजनाएं ध्वस्त

नागपुर: कभी देश के सबसे सुव्यवस्थित और सुरक्षित शहरों में गिना जाने वाला नागपुर आज भिखारियों की बाढ़ से जूझ रहा है। हर चौराहे, हर सिग्नल, हर भीड़भाड़ वाले इलाके में भिखारी खुलेआम कब्जा जमाए बैठे हैं। ट्रैफिक सिग्नलों पर गाड़ियों के बीच घूमते, जबरन कार की खिड़कियों पर दस्तक देते और पैसों के लिए जिद करते ये भिखारी अब न सिर्फ शहर की छवि बिगाड़ रहे हैं, बल्कि नागरिकों के लिए असुरक्षा का कारण भी बनते जा रहे हैं।
शहर के कस्तूरचंद पार्क, सीताबर्डी चौक, पंचशील चौक, वीआईपी रोड, धरमपेठ, मानकापुर, और रेलवे स्टेशन परिसर जैसे व्यस्त और संवेदनशील इलाकों में भिखारियों का खुलेआम जमावड़ा दिखाई देता है। इन इलाकों में भिखारी राहगीरों और वाहन चालकों से जबरन पैसे मांगते हैं, और मना करने पर कई बार गाली-गलौज या दुर्व्यवहार करते हैं।
भिखारी मुक्त नागपुर का सपना बना मजाक
नागपुर पुलिस और मनपा ने 'भिखारी हटाओ' अभियान के तहत कुछ NGOs और समाजसेवी संस्थाओं की मदद लेने की बात कही थी। एक विशेष पुनर्वास योजना बनाई गई थी, जिसमें भिखारियों को पकड़कर सामाजिक संस्थाओं को सौंपने, आश्रय गृह में रखने और उन्हें कुटीर उद्योगों में जोड़ने का प्रस्ताव था। पुलिस ने ‘रेस्क्यू टीम’ तक बनाने की घोषणा की थी। लेकिन आज की स्थिति में कोई भी योजना नज़र नहीं आती। न कोई टीम दिखती है, न पुनर्वास केंद्रों की रिपोर्टिंग। कोई निगरानी नहीं, कोई फॉलोअप नहीं। शुरुआत में कुछ भिखारियों को पकड़कर छोड़ा गया, लेकिन उसके बाद न कोई निरंतरता रही और न ही कोई रिकॉर्डेड सफलता। सिग्नलों पर 5-10 की जगह 15-20 भिखारी दिखाई देने लगे हैं।
भिखारियों ने बाँटें अपने इलाके
नागपुर में मानसून की बारिश शुरू हो चुकी है। इस कारण शहर के तमाम फ्लाईओवर और मेट्रो स्टेशन के निचे का हिस्सा इन लोगों का घर बन चूका है। तमाम लोग दिन में यहीं भीख मांगते है और रात में यहीं सो जातें हैं। सीताबर्डी के आदिवासी गोवारी उड्डयन पुल के निचे पार्किंग के लिए बनी जगहों पर भिखारियों ने कब्ज़ा कर रखा है। इस कारण परिसर में आने वाले लोगों को अपने दोपहिया वाहनों को सड़कों पर पार्क करना पड़ता है। जिन भिखारियों को सड़कों से हटाने की बात हुई थी, वे अब और अधिक संख्या में लौट चुके हैं। ये भिखारी अब ट्रैफिक सिग्नलों पर इतने व्यवस्थित ढंग से नजर आते हैं, मानो किसी योजना के तहत इलाके बंटे हों। पुलिस द्वारा बनाई गई योजनाएं फाइलों तक सीमित रह गई हैं और भिखारी मुक्त नागपुर सिर्फ एक दिखावटी सपना बनकर रह गया है।
नागरिकों का आक्रोश
स्थानीय निवासी, व्यापारी, वाहन चालक और सोशल वर्कर लगातार इस मुद्दे को उठाते रहे हैं। उनका कहना है कि पुलिस सिर्फ प्रेस रिलीज़ और बयानबाज़ी तक सीमित है। भिखारियों को हटाने के लिए कोई नियमित गश्त नहीं होती। सड़क पर गाड़ी रोकते ही 4-5 लोग आकर खिड़की थपथपाते हैं। कोई बच्चे को गोद में लिए होता है, तो कोई दिव्यांग बनकर जबरन पैसे मांगता है। मना करने पर गालियां देते हैं। पुलिस चौकी पास में होती है, लेकिन कोई नहीं आता।”

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