पर्यावरण अनुकूल उत्सव मनाएं, मनपा ने नागरिकों से घरो में बाप्पा विदाई देने का किया आवाहन
नागपुर: गणेश उत्सव की मंगलवार से शुरुआत हो रही है। राज्य के सबसे बड़े उत्सव को लेकर भक्तों में बेहद उत्साह है। बाप्पा को विराजने के बाद उनका विसर्जन किया जाता है। लेकिन देखने में ये आता है की मूर्तियों के विसर्जन के साथ आस्था का खिलवाड़ भी हो जाता है। इसलिए कई लोग यह प्रयास कर रहे है की भक्त अपने घरों में मूर्तियों के विसर्जन की आदत को डालें। नागपुर महानगर पालिका भी भक्तो से अपील कर रही है की अगर संभव हो तो भक्त अपने घर में ही बाप्पा को विदाई दे।
नागपुर में पर्यावरण पूरक गणेश उत्सव मनाया जाये। इसे लेकर कई तरह के प्रयास शुरू है। उत्सव के दौरान होने वाले अलग-अलग तरह के प्रदूषणों को कम किया जा सके इसे लेकर न केवल प्रशासनिक बल्कि सामाजिक पहले भी शुरू है। मूर्तियों के विसर्जन के चलते शहर के तालाबों में होने वाली गंदगी को देखते हुए तालाबों में मूर्तियों के विसर्जन पर पूरी तरह से पाबंदी है। मूर्तियों के विसर्जन के लिए महानगर पालिका द्वारा कृत्रिम तालाबों की व्यवस्था बीते कुछ वर्षों से की जा रही है। लेकिन अगर नागरिक चाहें तो अपने घरो में विराजने वाले बप्पा का विसर्जन अपने घरों में ही कर सकते है।।इसके दोहरे फायदे है।
महानगर पालिका की नागरिको से अपील है की अगर संभव हो तो वो अपने घरों में ही विसर्जन करें और मूर्ति की मिट्टी का इस्तेमाल पेड़ उगाने में हो। घरों में विराजने वाले बप्पा का घरों में ही विसर्जन जो इसे लेकर कई सामाजिक संस्थायें सामने आ रही है। नागपुर में वाइल्ड लाइफ सोसायटी लागत मूल्य में भक्तों को गणेश की मूर्तियाँ वितरित कर रही है।। खास है की मूर्तियों के साथ एक गमला और पेड़ भक्तों को दिया जा रहा है। ताकि भक्त अपने घर में ही विसर्जन करें।
शहर के महल इलाके में रहने वाली रानी जैस्वाल बीते कई वर्षो से अपने घर में ही गणेश की मूर्ति का विसर्जन करती है वो इसे आस्था के साथ पर्यावरण के लिए बेहतर मानती है। उनके गार्डन में कई पौधे गणेश की विसर्जित की गयी मूर्ति से बची मिट्टी में लगे है।
पर्यावरण के संरक्षण के लिए कृत्रिम तालाबों की व्यवस्था एक बेहतर विकल्प हो सकता है। लेकिन दिखाई यह भी देता है की कृत्रिम तालाबों में विसर्जित की गयी मूर्तियाँ ठीक ढंग से घुलती नहीं है। अंत में इन मूर्तियों को खुले में डाल दिया जाता है यह भी एक तरह से श्रद्धा का अनादर जैसा है। अगर घर में विसर्जन की आदत डाली जाये तो निगरानी से साथ सही ढंग से बप्पा की विदाई हो सकती है।
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