बिना रीति-रिवाजों के हिन्दू विवाह मान्य नहीं, याचिका पर सुनवाई करते सुप्रीम कोर्ट का बड़ा निर्णय

नई दिल्ली: हिंदू विवाह एक संस्कार है। यह नाचने, गाने, खाने या दारु पीने का कार्यक्रम नहीं है। बिना रीति रिवाजों के हिन्दू विवाह मान्य नहीं। बुधवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की जस्टिस बी. नागरत्न की बेंच ने यह फैसला सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "यदि हिंदू विवाह के दौरान आवश्यक अनुष्ठान नहीं किए जाते हैं, तो विवाह वैध नहीं है। ऐसे विवाह अमान्य माने जायेंगे। रजिस्टर्ड होने पर भी ये शादियां मान्य नहीं होंगी। क्योंकि हिंदू विवाह के दौरान सप्तपदी जैसी रस्में बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। साथ ही विवाद की स्थिति में ऐसे अनुष्ठानों को सबूत माना जाता है।"
न्यायाधीश ने कहा, “हिंदू विवाह एक संस्कार है और भारतीय समाज में विवाह को एक महत्वपूर्ण संस्था का दर्जा दिया जाना चाहिए। साथ ही, युवाओं को शादी के बारे में सोचते समय यह भी सोचना चाहिए कि भारतीय समाज में विवाह की संस्था कितनी पवित्र है।"
उन्होंने आगे कहा, “विवाह नाचने, गाने, खाने, पीने या दहेज सहित अनावश्यक चीजों के आदान-प्रदान का आयोजन नहीं है। भारतीय समाज में यह एक महत्वपूर्ण संस्कार है। इस समारोह के माध्यम से, पुरुष और महिला के बीच एक विशेष संबंध बनता है, उन्हें पति और पत्नी का दर्जा दिया जाता है।"
क्या है मामला?
सुप्रीम कोर्ट में एक दम्पति ने याचिका लगाई थी। याचिका में महिला ने तलाक कार्रवाई के ट्रांसफर की मांग की है. मुकदमा जारी रहते हुए ही, पति और पत्नी ने संयुक्त रूप से यह घोषणा कर दी कि उनकी शादी वैध नहीं है. दावा किया कि उन्होंने कोई विवाह नहीं किया है क्योंकि उन्होंने कोई रीति-रिवाज, संस्कार या अनुष्ठान नहीं किया है. हालांकि, कुछ परिस्थितियों और दबावों के कारण उन्हें शादी का रजिस्ट्रेशन कराना पड़ा।

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