देरी से न्याय देने के लिए जस्टिस गवाई ने मांगी माफ़ी, न्यायाधीश के काम की हो रही सराहना

नई दिल्ली: देश की अदालतों से न्याय मिलने में सालों लग जाते है। ऐसे भी कई मामले सामने आए हैं कि, न्याय मिलने की आस में लोगों की मौत भी हो जाती है। लेकिन इसपर कभी किसी जज और अदालत ने माफ़ी नहीं मांगी है। हालांकि, यह अब बदलते हुए दिख रहा है। पहली बार किसी जज ने लेट फैसला देने के लिए न्यायाधीश ने सावर्जनिक तौर पर पीड़ित से माफ़ी मांगी। और यह काम किया है सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बीआर गवई ने। न्यायाधीश के इस काम को लेकर लगातार सराहना हो रही है।
जस्टिस गवई ने चंडीगढ़ से संबंधित मामले में देरी से फैसले देने के लिए न केवल माफी मांगी, बल्कि देरी का कारण भी पक्षकारों को बताया। जस्टिस बी.आर. गवई और एम.एम. सुंदरेश चंडीगढ़ शहर में एकल आवासीय इकाइयों को अपार्टमेंट में बदलने के बड़े पैमाने पर चलन के खिलाफ दायर याचिका के एक मामले में फैसला सुना रहे थे।
जस्टिस बी.आर. गवई ने कहा कि, ‘हमें विभिन्न कानूनों के सभी प्रावधानों और उनके तहत घोषित किए गए नियमों पर विचार करना था।’ जस्टिस गवई ने कहा कि इसके कारण 3 नवंबर, 2022 को फैसला सुरक्षित रखने के बाद से इसे सुनाने में दो महीने से अधिक समय लग गया।"
जस्टिस गवई ने कहा कि, “स्थायी विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच उचित संतुलन बनाने की भी जरूरत है। केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन को चंडीगढ़ के विकास के चरण एक में एकतरफा रूप से इस तरह कि प्रैक्टिस की मंजूरी देने से इसके पर्यावरणीय प्रभाव के साथ ही संबंधित क्षेत्र की विरासत की स्थिति को ध्यान रखने के मद्देनजर जस्टिस गवई ने टिप्पणी की।”
जस्टिस गवई ने कहा कि, "अब समय आ गया है कि केंद्र और राज्य स्तर पर विधायिका, कार्यपालिका और नीति निर्माता अव्यवस्थित विकास के कारण पर्यावरण को होने वाले नुकसान पर ध्यान दें और यह सुनिश्चित करने के लिए जरूरी कदम उठाए, ताकि विकास पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाए।"

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