Mahakumbh 2025: संत और साधू इतनी बड़ी जटाएं क्यों रखते हैं? आखिर क्या है इसका महत्व

तीर्थराज प्रयाग में महाकुंभ चल रहा है, रोजाना करोड़ो लोग महाकुंभ में हजारी लगा रहे और त्रिवेणी में स्नान कर रहे हैं। वहीं लाखों साधुओं की उपस्थिति इस आयोजन को विशेष और अद्वितीय बनाती है। महाकुंभ का मुख्य आकर्षण साधु-संतों का विशाल जमावड़ा होता है, जो इसे न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी अद्वितीय बनाता है। संतो के इस महासंगम में बड़ी-बड़ी जटाओं वाले साधू संतो की भी बढ़ी संख्या में दिखाई दे रहे हैं। जिसके बाद से यह सवाल उठता है कि, आखिर संत और साधू इतनी बड़ी जटाएं क्यों रखते हैं? उसे काटते क्यों नहीं? इन तमाम सवालों का जवाब जानेंगे इस रिपोर्ट में.
जटाओं का महत्व आध्यात्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से बहुत गहरा है। साधुओं के लंबे बाल रखने का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों और धर्म शास्त्रों में मिलता है। हिंदू धर्म में लंबे बालों को आध्यात्मिक ऊर्जा और तपस्या का प्रतीक माना गया है। माना जाता है कि बालों में ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रवाह होता है। शिव भक्तों के लिए भगवान शिव के जटा जूट यानि लंबी जटाओं का अनुसरण करना धार्मिक आस्था की ओर इशारा करता है। जटाओं का रखरखाव मुख्यतः साधु-संतों और तपस्वियों द्वारा किया जाता है, और इसका कारण उनके जीवन दर्शन, त्याग और आत्म-अनुशासन से जुड़ा हुआ है।
जटाओं का महत्व:
त्याग और वैराग्य का प्रतीक:
जटाएं त्याग और सांसारिक मोह-माया से दूर रहने का प्रतीक मानी जाती हैं। साधु-संत जटाओं के माध्यम से यह दर्शाते हैं कि उन्होंने अपनी बाहरी सुंदरता और सांसारिक इच्छाओं का त्याग कर दिया है।
आध्यात्मिक शक्ति का केंद्र:
जटाओं को आध्यात्मिक शक्ति और ऊर्जा का भंडार माना जाता है। यह विश्वास है कि जटाएं ब्रह्मांडीय ऊर्जा को धारण करती हैं और साधु के तप और साधना को बढ़ाती हैं।
प्राकृतिक और सादगी का अनुसरण:
जटाएं स्वाभाविक रूप से बढ़ती हैं, जिन्हें बिना किसी कृत्रिम हस्तक्षेप के रखा जाता है। यह प्रकृति और सादगी के साथ जीवन जीने के विचार का प्रतीक है।
धार्मिक परंपरा:
हिंदू धर्म में जटाएं भगवान शिव और उनके अनुयायियों का प्रतीक मानी जाती हैं। शिव को 'जटाधारी' कहा जाता है, और उनके अनुयायी इस परंपरा का पालन करते हैं।
साधु-संत क्यों रखते हैं जटाएं?
साधना और तपस्या में सहायता:
जटाएं साधु के लिए ध्यान और तपस्या में सहायक मानी जाती हैं। यह उनके मन को एकाग्र करने और सांसारिक विक्षेपों से बचने में मदद करती हैं।
परंपराओं का पालन:
धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के अनुसार, साधु-संतों के लिए जटाओं को धारण करना एक अनुशासन का हिस्सा है।
प्राकृतिक जीवन जीने का प्रतीक:
जटाएं यह दर्शाती हैं कि साधु प्रकृति के करीब हैं और कृत्रिम साधनों से दूर हैं।
आत्म-अनुशासन और धैर्य:
जटाओं को संवारने और बनाए रखने में समय और धैर्य की आवश्यकता होती है। यह आत्म-अनुशासन और संयम को प्रकट करता है।

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