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Chandrapur

चंद्रपुर बीजेपी जिलाध्यक्ष पद की नियुक्तियां टलीं, अब कोर कमिटी लेगी अंतिम फैसला


- पवन झबाडे

चंद्रपुर: भारतीय जनता पार्टी द्वारा बुधवार को ग्रामीण और महानगर जिलाध्यक्षों नियुक्तियों की  घोषणा की गई, लेकिन चंद्रपुर, गढ़चिरोली और वर्धा जिलों की नियुक्तियां फिलहाल टाल दी गई हैं। चंद्रपुर में इन पदों को लेकर विवाद और शक्ति प्रदर्शन के चलते पार्टी ने नियुक्तियों को अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया है। सूत्रों के अनुसार, इस पर अब अंतिम निर्णय पार्टी की कोर कमिटी की बैठक में लिया जाएगा।

बीजेपी में वरिष्ठ नेता सुधीर मुनगंटीवार का संगठन पर अब तक एकछत्र वर्चस्व रहा है, लेकिन पहली बार उनके विरोधी एकजुट होकर उन्हें चुनौती दे रहे हैं। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष हंसराज अहीर, विधायक किशोर जोरगेवार, विधायक बंटी भांगड़िया, विधायक करण देवतळे, पूर्व विधायक शोभा फडणवीस और पूर्व विधायक संजय धोटे ने मिलकर एक मजबूत रणनीति तैयार की है। दूसरी ओर मुनगंटीवार को राजुरा के विधायक देवराव भोंगले, पूर्व विधायक प्रा अतुल देशकर और नागपुर निवासी चंद्रपुर के पूर्व विधायक नाना शामकुले का समर्थन मिला है।

इस संघर्ष की शुरुआत राजुरा और चंद्रपुर विधानसभा क्षेत्रों में मंडल प्रमुखों की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर हुई। पार्टी ने संबंधित अभिप्राय लेकर सूची प्रदेश कार्यालय को भेजी थी, लेकिन विधायक जोरगेवार और पूर्व विधायक धोटे ने इस पर आपत्ति जताई। नतिजन, प्रक्रिया को रोककर दोबारा शुरू करना पड़ा। इस दौरान दोनों गुटों ने लगातार बैठकें कीं और अभिप्राय दर्ज कराने के दिन जोरदार शक्ति प्रदर्शन भी किया गया। 

ग्रामीण और महानगर जिलाध्यक्ष पद की चयन प्रक्रिया में भी यही तनाव दिखाई दिया। करीब 25 वर्षों में पहली बार जिलाध्यक्ष पद के लिए अभिप्राय दर्ज किए गए। पार्टी की ओर से भेजे गए निरीक्षकों ने पात्र पदाधिकारियों से राय ली। चूंकि यह मुकाबला काफी कांटे का था, इसलिए नागपुर से विशेष रूप से पूर्व विधायक नाना शामकुळे भी आकर अपनी पसंद दर्ज कराने पहुंचे। अब तक संगठन पर मुनगंटीवार का वर्चस्व कायम रहा है, और अभिप्राय दर्ज कराने वाले अधिकतर पदाधिकारी भी उन्हीं के समर्थक थे। 

आंतरिक कलह बना देरी की वजह 

वर्तमान ग्रामीण जिलाध्यक्ष हरीश शर्मा और महानगर जिलाध्यक्ष राहुल पावडे का कार्यकाल जल्द ही समाप्त हो रहा है। आशंका जताई जा रही है कि मुनगंटीवार उन्हें दोबारा मौका देने की रणनीति बना रहे हैं। इसी कारण विरोधी गुट ने उनके समर्थकों को संगठन से बाहर रखने के लिए जोरदार रणनीति बनाई है। यही आंतरिक संघर्ष जिलाध्यक्ष पद की नियुक्तियों में देरी की प्रमुख वजह बन गया है। सूत्रों के अनुसार, अगले सप्ताह कोर कमिटी की बैठक में इस मुद्दे पर अंतिम फैसला लिया जाएगा। आने वाले स्थानीय स्वराज्य संस्था चुनावों को देखते हुए जिलाध्यक्ष की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है, और इसी कारण हर गुट अपने पसंदीदा नेता को यह पद दिलाने के लिए पुरजोर प्रयास कर रहा है।