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Chandrapur

वर्तमान विधायकों की साख बचाने मैदान में पूर्व विधायक, संघटनात्मक चुनाव बने शक्ती प्रदर्शन का केंद्र


- पवन झबाडे

चंद्रपुर जिले की भाजपा इकाई में तकरीबन 30 वर्षों के बाद पहली बार आंतरिक कलह इतनी तीव्रता से सार्वजनिक रूप से सामने आई है। संगठनात्मक चुनावों के बहाने सामने आई यह गुटबाजी अब केवल पद की होड़ न होकर सत्ता संतुलन की खुली लड़ाई बन चुकी है।

जिला और महानगर अध्यक्ष पदों पर गुटीय रस्साकशी

ग्रामीण और महानगर जिला अध्यक्ष पदों के लिए प्रदेश नेतृत्व द्वारा अभिप्राय (मत) मांगा गया, जो सामान्यत: एक औपचारिक प्रक्रिया होती है, लेकिन इस बार इसमें वर्तमान व पूर्व विधायकों की खुलकर भागीदारी ने इसे विशेष महत्व दे दिया है। प्रत्येक गुट ने अपने वफादार कार्यकर्ताओं को समर्थन देकर उन्हें आगे लाने का प्रयास किया।

शहर अध्यक्ष पद की लड़ाई

वर्तमान अध्यक्ष राहुल पावडे, जो विधायक सुधीर मुनगंटीवार के नजदीकी माने जाते हैं, साथ ही डॉ. मंगेश गुलवाडे, सुभाष कासनगोट्टवार और दशरथसिंग ठाकुर जैसे नाम भी रेस में हैं। डॉ. गुलवाडे ने अतिरिक्त रणनीति अपनाते हुए विधायक किशोर जोरगेवार से समर्थन माँगा, जिससे उनके चुनावी तेवर और गुटीय समीकरणों की जटिलता दिखाई दी। हालांकि मुनगंटीवार गुट ने उन्हें समझाने की कोशिश की , लेकिन वे डटे रहे, जो स्पष्ट संकेत है कि संगठन में अंतर्निहित असंतोष गहरा हो गया है। 

ग्रामीण जिलाध्यक्ष पद पर संघर्ष

यहाँ भी मुकाबला बेहद दिलचष्प है। वर्तमान जिलाध्यक्ष हरीश शर्मा के सामने नामदेव डाहुले, कृष्णा सहारे और विवेक बोढे हैं। डाहुले को मुनगंटीवार विरोधी खेमे का समर्थन प्राप्त है, जिससे यह लड़ाई व्यक्तिगत न होकर गुटीय ताकत का प्रदर्शन बन चुकी है। 

वरिष्ठ नेताओं की भागीदारी से स्पष्ट संकेत

इस अभिप्राय प्रक्रिया में स्वयं विधायक सुधीर मुनगंटीवार, बंटी भांगडिया, किशोर जोरगेवार, करण देवतळे और देवराव भोंगळे जैसे नेताओं की उपस्थिति बताती है कि यह केवल संगठनात्मक नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रतिष्ठा की लड़ाई है।

साथ ही, राजनीति से दूर चल रहे पूर्व विधायक नाना शामकुळे और पूर्व मंत्री शोभा फडणवीस जैसे नेताओं ने भी अपना अभिप्राय दिया, जिससे स्पष्ट होता है कि पूर्व विधायक भी अपने गुटों के प्रभाव को बढाने के लिए सक्रिय हो चुके हैं।

इस पूरी प्रक्रिया से यह देखा जा रहा है कि चंद्रपुर भाजपा में सत्ता का केंद्र अब केवल वर्तमान जनप्रतिनिधि नहीं रहे, बल्कि पूर्व विधायक भी सक्रिय रूप से रणनीति रच रहे हैं। संगठनात्मक चुनाव एक ‘शक्ति प्रदर्शन’ का मंच बन चुके हैं और इसमें राजनीतिक परिपक्वता से अधिक गुटीय निष्ठा हावी होती दिख रही है। आनेवाले दिनों में इन पदों की घोषणा से किस गुट को बढ़त मिलती है, इस पर चंद्रपुर भाजपा की आगामी दिशा तय होगी।