संसद भवन में साधु संतों की उपस्थिति और मंत्रोच्चार का शरद पवार ने किया विरोध, कहा- अच्छा हुआ जो मैं वहां नहीं था

मुंबई: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार सुबह नए संसद भवन का उद्घाटन कर उसे जनता को समर्पित कर दिया। इस दौरान तमिलनाडु से आए संतों और साधुओं ने सनातन पद्धति से मंत्रोच्चार कर प्रधानमंत्री मोदी को ऐतिहासिक सेंगोल दिया जिसे लोकसभा में स्थापित किया गया। वहीं इसको लेकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सुप्रीमो ने सवाल उठा दिया है। संसद परिसर में साधुओं की उपस्थित पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि, अच्छा हुआ जो आज मैं वहां मौजूद नहीं था।"
पुणे में अपने आधिकारिक आवास पर बोलते हुए पवार ने कहा, “वहां मौजूद लोगों को देखने के बाद जो धार्मिक कार्य चल रहा था, आधुनिक भारत की जो अवधारणा जवाहरलाल नेहरू ने पेश की थी, संसद में अब जो चल रहा है, वह दूर की दुनिया है। एक बार फिर हमें चिंता है कि हम देश को कुछ साल पीछे ले जाएंगे। विज्ञान से समझौता नहीं किया जा सकता है। नेहरू ने लगातार आधुनिक विज्ञान पर आधारित समाज बनाने की भूमिका की वकालत की। उस स्थान पर आज जो हुआ वह ठीक इसके विपरीत है।”
उन्होंने आगे कहा, “मैंने सुबह का आयोजन देखा। मुझे खुशी है कि मैं वहां नहीं गया। वहां जो कुछ हुआ उसे देखकर मैं चिंतित हूं। क्या हम देश को पीछे ले जा रहे हैं? क्या यह आयोजन सीमित लोगों के लिए ही था?”
एनसीपी प्रमुख ने आगे कहा, "राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को आमंत्रित करना शासकों की जिम्मेदारी थी। क्योंकि संसद के किसी भी कार्य की शुरुआत राष्ट्रपति की उपस्थिति से ही होती है। उनका भाषण होता है। सत्र की शुरुआत भी राष्ट्रपति के अभिभाषण से होती है। राज्यसभा का मुखिया उपराष्ट्रपति होता है। संसद के कार्यक्रम लोकसभा और राज्यसभा हैं। इसमें लोकसभा अध्यक्ष नजर आए। ख़ुश है लेकिन राज्यसभा का मुखिया उपराष्ट्रपति होता है। उनकी उपस्थिति बमुश्किल ध्यान देने योग्य थी। अतः यह संदेहास्पद है कि क्या यह समारोह एक सीमित समूह के लिए ही था।"

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