Chandrapur: जवस की खेती का रकबा बढ़ाएं, डा. सिडाम ने की किसानों से अपील

सिंदेवाही: कृषि विज्ञान केंद्र में किसान प्रशिक्षण आयोजित किया गया. मुख्य मार्गदर्शक एवं आयोजक डा. विजय सिडाम ने किसानों से जवस की खेती का रकबा बढ़ाने की अपील की. उन्होंने जवस तिलहन फसल की एकीकृत कृषि तकनीक तथा फसल को फफूंद जनित रोगों से बचाने के लिए बुआई से पूर्व कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम या थीरम 3 ग्राम प्रति किग्रा बीज जैसे कवकनाशी से बीजोपचार करने की बात कही. किसानों को जवस की फसल के महत्व के बारे में बीज बोने की प्रक्रिया पर गहन मार्गदर्शन देकर समझाया. जवस के तेल के कुल उत्पादन का 20 प्रतिशत खाद्य तेल के रूप में उपयोग किया जाता है और 80 प्रतिशत तेल का उपयोग औद्योगिक क्षेत्र में साबुन, पेंट, वार्निश, तिरपाल और शाही बनाने के लिए किया जाता है. जवस की ढेप डेयरी पशुओं के लिए सबसे अच्छा चारा है. अलसी के डंठलों से उत्पन्न होने वाले सूत की गुणवत्ता अच्छी होने के कारण इसका उपयोग बैग, कागज, कपड़े आदि के लिए किया जाता है.
स्वास्थ्य के लिए अच्छा है तेल
डा. सिडाम ने कहा कि जवस का तेल स्वास्थ्य के लिए उत्तम है. अलसी के तेल में 58 प्रतिशत ओमेगा-3, मैदामल और एंटी-आक्सीडेंट होते हैं. इसलिए यह रक्तचाप, कोलेस्ट्राल, ग्लिसराइड जैसे हृदय रोग पैदा करने वाले विकारों को कम करता है. गठिया रोग के लिए सहनीय होता है. मधुमेह नियंत्रित होता है. कैंसर और अन्य के खिलाफ प्रतिरक्षा बनती है. इसलिए रोजाना के आहार में अलसी के तेल का सेवन करने की सलाह डाक्टर देते हैं.
फसल के लिए उपलब्ध बाजारों की दी जानकारी
अटारी पुणे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन एनएफएसएम के तहत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन एनएफएसएम के तहत कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा नागभीड़ तहसील के चिंधी चक और सिंदेवाही तहसील के उमरवाही में जवस का प्रदर्शन किया गया. पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविद्यालय, अकोला से एक कृषि संचारक भी वितरित किया गया. जिसने किसानों के लिए कृषि संबंधी संपूर्ण जानकारी दी गई. फसल के लिए उपलब्ध बाजारों पर मार्गदर्शन किया गया. किसान प्रशिक्षण का आयोजन डा. वी.जी. नागदेवते आदि के मार्गदर्शन में लिया गया. सफल बनाने में सहयोग कैलास कामड़ी ने किया.

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