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संविधान की प्रति में अकबर और टीपू सुल्तान क्यों? एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने उठाया सवाल


नागपुर: नागपुर सहित महाराष्ट्र में औरंगजेब को लेकर सियासत गरमाई हुई है। नागपुर में तो यह विवाद हिंसा तक पहुंच गया। औरंगजेब को लेकर चल रहे विवाद के बीच अकबर और टीपू सुल्तान को लेकर नया विवद छिड़ गया है। ज्ञानव्यापी मामले में हिन्दू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने संविधान में अकबर और टीपू सुल्तान की तस्वीर पर सवाल उठाया। जैन ने पूछा कि, "संविधान की मूल प्रति में अकबर की तस्वीर क्यों है? संविधान की मूल प्रति में इस तस्वीर को शामिल करने के पीछे किस मानसिकता का हाथ था।"

लॉ फोरम नागपुर की ओर से एडवोकेट विष्णु शंकर जैन द्वारा ‘वक्फ बोर्ड एवं समान नागरिक संहिता-वास्तविकता’ विषय पर व्याख्यान आयोजित किया गया। एडवोकेट जैन राम जन्मभूमि और ज्ञानवापी मस्जिद के लिए लड़ने वाले वकील के रूप में प्रसिद्ध हैं। इस दौरान उन्होंने पूजा स्थल अधिनियम का जिक्र किया और कहा कि, "राम जन्मभूमि मामला अंतिम लड़ाई है। हिंदुओं को अब जागरूक होने की जरूरत है। भले ही अदालत हमारी दायर याचिकाओं को बार-बार खारिज कर दे, लेकिन भविष्य में अदालत में दायर की गई हर याचिका भगत सिंह के बम की तरह होगी।"

अधिवक्ता जैन ने कहा कि, "हिंदुओं को एकजुट होकर हिंदुओं के खिलाफ न्यायिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत है। संविधान की मूल प्रति पर भगवान राम का चित्र अंकित है। यह गर्व की बात है। हालाँकि, मूल प्रति में अकबर की तस्वीर शामिल करने के पीछे क्या मानसिकता थी? टीपू सुल्तान की तस्वीर झाँसी की रानी की तस्वीर के साथ क्यों रखी गई? एडवोकेट जैन ने ऐसे कई सवाल उठाए। संविधान सभा ने 26 नवंबर को भारत के नागरिकों को संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ दिलाई। इसका उल्लेख परिचय के अंतिम पैराग्राफ में किया गया है। तो फिर उन्हें शपथ के 30 साल बाद धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्दों को शामिल करना क्यों याद आया? उन्होंने यह प्रश्न भी पूछा।

नागरिक संहिता से हिंदूओं को कोई लाभ नहीं

समान नागरिक संहिता लागू करने से हिंदूओं को कोई लाभ नहीं होगा। हमें अन्य धर्मों की समस्याओं का समाधान क्यों करना चाहिए? दो मुद्दों, विवाह की न्यूनतम आयु और विवाहों की संख्या के अलावा, समान नागरिक संहिता से हिंदुओं को कोई लाभ नहीं होगा। हम समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन की मांग करके गलत रास्ते पर जा रहे हैं। एडवोकेट जैन ने अपनी दृढ़ राय व्यक्त करते हुए कहा कि यदि हम समान नागरिक संहिता के माध्यम से उनके धर्म में संशोधन करते हैं, तो यह हमारी बौद्धिक हार होगी।